मध्यप्रदेश जनजातीय व्यक्तित्व / famous tribal personalities in madhyapradesh

Aman Arun
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मध्यप्रदेश जनजातीय व्यक्तित्व

मध्यप्रदेश प्राचीनकाल से ही जनजातियों का निवास स्थल रहा है ,जहाँ कई जनजातियाँ फली फूली और विकसित हुई हैं |

                       वर्तमान में भी मध्यप्रदेश भारत में सर्वाधिक जनजातीय जनसँख्या वाला राज्य है ,और इसमें निवास करने वाले व्यक्तियों ने देश के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर देश के साहित्य ,कला ,विज्ञान के क्षेत्र मे अभूतपूर्व योगदान दिया है |

                      मध्यप्रदेश के जनजातीय व्यक्ति जिन्होंने निम्न क्षेत्रों मे योगदान दिया है |

 

 


 

 

स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति

चूंकि मध्यप्रदेश एक जनजातीय बहुल क्षेत्र प्रारंभ से ही रहा है, और जब अंग्रेज प्लासी ,बक्सर के युद्ध में भारतीय शासकों को पराजित कर चुके थे तो अब वे अपने   क्षेत्र को भारतीय प्राकर्तिक संसाधनों में तक विस्तार करने चाह रहे थे इसी महत्वाकांक्षा से वे जनजातीय अधिकारों को सीमित करने लगे जिसने अंग्रेज एवं जनजातियों मे संघर्ष को बढ़ाया ओर जनजातियों द्वारा स्वतंत्रता के लिए कई स्वतंत्रता आन्दोलन किए गए जिनमें शामिल व्यक्ति हैं-

 

प्रमुख व्यक्तित्व

संग्राम क्षेत्र

विशेष

  टंट्या भील

 

निमाड़

 

>भील / भिलाला जनजाति से संबंधित महान योद्धा

 

> जन्म- 1842 (बड़दा अहिर गांव, पंधाना,जिला खंडवा )

 

> वास्तविक नाम - तातिया, तात्या, टांटिया, टण्ड्रा।

 

> पिता - भाउसिंह भील

 

> इन्हें निमाड़ का गौरव कहा जाता है।

 

> 1857 भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों में टंट्‌या मामा का नाम बड़े सम्मान एवं आदर के साथ लिया जाता है।

 

> अंग्रेजों ने जननायक टंट्या को भारतीय रॉबिनहुड की उपाधि दी थी।

 

> ये मात्र 16 वर्ष की उम्र में विद्रोही हो गए थे।

 

> 15 सितम्बर 1857 को टंट्या भील की भेंट तात्या टोपे से हुई।

 

>इनसे टंट्या ने गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण प्राप्त किया।

 

> 21 नवम्बर 1858 को तात्या तोपे के साथ मिलकर खरगोन के किले पर विजय प्राप्त की इसके बाद रघुनाथ मंडलोई के साथ मिलकर जबलपुर जेल पर आक्रमण किया तथा कैदियों को छुड़ाया और अंग्रेजी खजाना

लूटा

 

> टंट्या मामा को गणपत राजपूत की गद्दारी से ब्रिगेड

मेजर ईश्वरी प्रसाद द्वारा पकड़ा गया तथा 19 अक्टूबर 1989 को जबलपुर न्यायालय द्वारा फांसी की सजा सुनाई

 

गई और 4 दिसम्बर 1989 को इंदौर में फांसी दे दी गई।

 

> इनकी समाधि स्थल पातालपानी (इन्दौर) में स्थित है।

 

 

> 4 दिसम्बर 2021 को टंट्या मामा की 10 फीट ऊंची धातु से बनी मूर्ति का पातालपानी (इन्दौर) में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा आनावरण किया गया था।

 

 

शंकर शाह एवं रघुनाथ शाह

महकौशल क्षेत्र,जबलपुर  

> जबलपुर में रानी दुर्गावती के वंशज गोंडवाना रियासत के  शंकरशाह व रघुनाथ शाह ने 1857 की  क्रांति का नेतृत्व किया।

 

> इन्होंने अंग्रेजों से संघर्ष हेतु अपने लोगो को संगठित कर ‘गोटीया' नामक दल का गठन किया |जिसका उद्देश्य जबलपुर छावनी पर आक्रमण कर उस पर अधिकार करना था।

 

> शंकरशाह व रघुनाथशाह की योजना लेफ्टिनेंट क्लार्क को विश्वासघाती भददासिंह के कारण पता चल गई |

 

> जिसके पश्चात् अंग्रेजो ने इन्हें गिरफ्तार कर राजद्रोह का मुकदमा चलाया एवं इन्हें 18 सितंबर को तोप से बांधकर उड़ा दिया गया।

 

रानी फूलकुंवरी देवी

महकौशल क्षेत्र (जबलपुर),गोंडवाना रियासत

> फूलकुंवरी ,शंकरशाह की पत्नी थी| जिन्होनें उन्हें बंदी बनाए जाने के बाद क्रांति का नेतृत्व किया |

 

भीमा नायक

सेंधवा (बड़वानी)

> भील जनजाति से थे जिन्होंने ,1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मालवा-निमाड़ क्षेत्र में भीमा नायक ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया था |

 

> भीमा नायक इस क्षेत्र में इतने प्रभावी और लोकप्रिय थे कि अनेक युवक बिना वेतन के उनके फौज टुकड़ी में शामिल हो गए थे।

 

> भीमा नायक को जब अंग्रेज नहीं पकड़ पाए तब उनके रिश्तेदारों एवं जानने वालों को दंड एवं प्रलोभन दिये गए। उनके विश्वासघात के कारण बाद में भीमा नायक को पकड़ लिया गया|

 

> उन पर 2 अप्रैल 1868 को  देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। आजीवन कारावास की सजा देकर बाद में उन्हें 1876 में अंडमान जेल,पोर्ट ब्लेयर में फांसी दे दि गई |

 

सीताराम कंवर

बड़वानी, खरगोन क्षेत्र

> भिलाला जनजाति से संबंधित थे जिन्होनें ,1857 की क्रांति में बड़वानी और होल्कर रियासत में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का नेतृत्व किया |

 

> अक्टूबर 1858 को सीताराम कंवर व अंग्रेजी सेना युद्ध हुआ, जिसमें सीतारामकंवर को कैद कर लिया गया तथा उन्हें फांसी दे दी गई।

 

> ये शंकर शाह एवं रघुनाथ  शाह के गुप्तचर सेना के प्रमुख भी थे |

 

रघुनाथ सिंघ मंडलोई

टांडा बारूद , खरगोन एवं मालवा क्षेत्र

> अक्टूबर 1858 ईस्वी के कुछ पहले ही टांडा बारूद के रघुनाथ सिंह मंडलोई भिलाला ने विद्रोह कर दिया और फरार हो गया।

 

> इस पर इंदौर दरबार ने उसका वतन बलवंत सिंह मंडलोई के नाम कर दिया। बलवंत सिंह से कहा गया कि वह रघुनाथ सिंह और उनके साथियों को पकड़ने की कोशिश करें।

 

 

>जब रघुनाथ सिंह को पकड़ने की कोशिश की गई तो विद्रोह की गतिविधियां और तीव्र हो गई। रघुनाथ सिंह मंडलोई भिलाला मंडलोईयों की बिरादरी का पटेल था। उसे पकड़ने की ब्रिटिश सरकार ने बहुत कोशिश की।

 

> रघुनाथ सिंह अक्सर लूटमार करके बीजागढ़ में ठहरा करता था। मेजर कीटिंग ने उसे पकड़ने के लिए बीजागढ़ किले पर धावा बोला। इस कार्य में होलकर की सेना ने अंग्रेजों का सहयोग किया। बचाव का कोई रास्ता नजर न आता देख रघुनाथ सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया।

 

> रघुनाथ मंडलोई भिलाला का क्या अंत हुआ इस संबंध में कोई जानकारी नहीं मिलती।

 

खाज्या नायक

खरगोन(अमृत महोत्सव में), बड़वानी  क्षेत्र

> खाज्या नायक एक महान योद्धा सतपुड़ा की सुदूर पहाड़ियों में रहने वाले निमाड़ के जनजाति वीर योद्धा रहे। खाज्या नायक जिनकी कहानी से बहुत ही कम लोग अवगत हैं।

 

> वीर योद्धा भीमा नायक, खाज्या नायक और तांटया मामा भील ने साथ-साथ कई विद्रोहों में सहभागिता की। वे अक्सर अंग्रेजों से लूटी गई सामग्री गरीबों में बाँट दिया करते थे। उन्होंने अंग्रेजों से कई लड़ाई लड़कर उन्हें चिंतित कर दिया।

 

> कहा जाता है कि जब भी गाँव में अंग्रेज आते थे तो वे अंग्रेजों को मारकर वहां से भागने पर मजबूर कर देते थे।

 

> ज्ञातव्य है कि, स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे के पश्चिम निमाड़ के आगमन पर पहाड़ी अंचलों के गुप्त रास्तों से नर्मदा नदी पार करवा कर मंजिल तक पहुंचने में भीमा नायक, खाज्या नायक और बिरजू नायक का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

 

> खाज्या नायक तथा उनके साथी अंग्रेजों से 1858 में युद्ध लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए।

 

बिरजू नायक

बड़वानी जिले

> बिरजू नायक की कर्म स्थली सिन्धी घाटी थी, जो राजपुर पलसूद मार्ग पर स्थित है।

 

> जनजाति समाज के उनके परिवारजनों तथा जनश्रुतियों से प्राप्त जानकारी तथा लोकमान्यता के अनुसार बिरजू नायक हमेशा गरीब किसान, पीड़ित व्यक्तियों के हितों के लिए लड़ते थे।

 

> वीर बिरजू नायक 1857 के जनजाति योद्धा खाज्या नायक, तांटया भील, तथा भीमा नायक के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध कई विद्रोह किये एवं अंग्रेजी हुकूमत की वर्षों से चली आ रही साम्राज्यवादी नीति की नीव हिला डाली।

 

> वे लूटी हुई सामग्री गरीबों में बाँट देते थे इसलिए अंग्रेजों की नज़र में थे । वे मटली ग्राम में स्थित झरने पर नहाने जाया करते थे तब उन्हें अंग्रेजों द्वारा धोखे से मरवा दिया गया। उनका सिर धड़ से अलग हो गया। ऐसा बताया जाता है कि सिर धड़ से अलग होने के बाद भी वे उपला स्थित समाधी स्थल तक दौड़ते हुए आए व तत्पश्चात उन्होंने अपने प्राण त्यागे।

 

विरसा गोंड

बैतूल

> घोडा डोंगरी और भारत छोड़ो आंदोलन मे सक्रिय

 

> पुलिस द्वारा गोली चलाने पर वीरगति को प्राप्त हुए

 

राम गोंड ,कोवा गोंड ,जिर्रा गोंड ,मकडू गोंड

बैतूल

> 1930 के जंगल सत्याग्रह में भाग लिया

रानी अवंति बाई

रामगढ़ मण्डला

> अवन्ति बाई ने अंग्रेज सेनापति वार्डेन को हराया था किन्तु दूसरे बार के युद्ध में वे वीरगति को प्राप्त हो गई  |

 

अवन्ति को रामगढ़ की लक्ष्मी> बाई भी कहा जाता है |

 

> इनकी समाधि डिंडोरी जिले के बलपुर में स्थित है |

 

बूचा कोरकू,बंजारी सिंह कोरकू , जनक सिंह कोरकू

बैतूल जिले

> 1930 के जंगल सत्याग्रह बूचा कोरकू, बंजारी सिंह कोरकू , जनक सिंह कोरकू नें भी इस आन्दोलन के दौरान सक्रियता से भाग लिया था

गंजन सिंह कोरकू

घोड़ा डोंगरी बैतूल

>  22 अगस्त 1930 को, गंजन सिंह ने कुल्हाड़ियों और लाठियों से लैस सैकड़ों गोंड और कोरकू लोगों की भीड़ का नेतृत्व आरक्षित जंगलों में किया।

 

>  उन्होंने जंगल में घुसकर कानून तोड़ा. पुलिस ने तुरंत गंजन सिंह को गिरफ्तार करने का प्रयास किया, लेकिन लोगों ने उन्हें अपने नेता को छूने की अनुमति नहीं दी। आगामी झड़प में पुलिस की गोली से एक व्यक्ति की मौत हो गई, लेकिन गंजन सिंह पकड़ से भागने में सफल रहा।

 

>  कुछ देर तक अधिकारियों द्वारा उसे पकड़ने की सारी कोशिशें बेकार गईं. लेकिन एक महीने बाद गंजन सिंह को पचमढ़ी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।

 

विष्णु सिंह उईके

बैतूल

> भारत छोड़ो आंदोलन मे सक्रिय

 

बादल भोई

छिन्दवाडा

> छिंदवाड़ा जिले के इमरत भोई-बादल भोई एक क्रांतिकारी नेता थे।

 

> इन्होंने असहयोग आंदोलन के समय 1923 में नेतृत्व करते हुए हजारों आदिवासियों के साथ कलेक्टर बंगले का घेराव किया। प्रदर्शन के दौरान हुए लाठीचार्ज में ये घायल हुए और इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

 

> इसके उपरांत इन्हें 1930 में वन नियम तोड़ने के लिए गिरफ्तार किया गया और जेल भेज दिया गया।

 

> ऐसी मान्यता है कि सन 1940 में अंग्रेजी शासक द्वारा जहर दिए जाने के बाद उन्होंने अपनी अंतिम सांस जेल में ही ली। राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

 

इमरत भोई सरेआम , इमरत भोई सरपाती ,तापरू भोई

छिन्दवाडा

> 1857 की क्रांति से संबंधित

मंशु ओझा

बैतूल

> घोड़ाडोंगरी (बैतूल) में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था।

 

> उनकी बैतूल जिले में अनेक आंदोलनों में सक्रिय भूमिका रही है। वहीं 4 नवम्बर 1942 से 20 जुलाई 1944 तक नरसिंहपुर जेल में इन्हें अंग्रेजों द्वारा कई तरह की यातनायें दी गई। वहीं 28 अगस्त 1981 को घोड़ाडोंगरी (जिला बैतूल) में इनका देहावसान।

 

गुड्डो बाई ,रैनो बाई ,बेमा बाई और बिरजू गोंड

सिवनी

> टुरिया जंगल सत्याग्रह में शहीद व्यक्तित्व |

 

मोती बाई , सुंदर बाई, मुन्दर बाई ,काशी बाई और झलकारी बाई

बुंदेलखंड क्षेत्र

> रानी लक्ष्मीबाई की सेना में सहायिका रही आदिवासी महिलायें

भागोजी नायक और काजर सिंह

विंध्य ,सतपुड़ा क्षेत्र

> 1857 की क्रांति में सहायक

 

वीर सुरेन्द्र साय

सम्बलपुर राज्य

> 1857 की क्रांति

 

बिरसा मुंडा

मुख्यतः झारखंड जिसमें मप्र. के कुछ भाग भी शामिल- छतरपुर

 1899 का मुंडा विद्रोह के नेतृत्वकर्ता

मण्डलेश्वर दुर्ग की घटना

खरगोन

> कारण – भीम नायक की वृद्ध माँ को कारागार मे यातनाएं दी गई जिससे 15 दिनों मे उनकी जेल मे ही मृत्यु हो गई , इससे  मण्डलेश्वर दुर्ग मे विद्रोह भड़क गया |

 

> खजब बुंदिस, शेख मोहम्मद, हाजी जमीन, झग्गा, दिलशोरखान, नरसिंह, निहाल आदि को सजा-ए-मौत दी गयी। उन्हें फाँसी पर सार्वजनिक रूप से लटकाया गया। शेष बचे मायाराम, मेहबूब उल्ला, गुलाब खाँ, जवाहर सिंह, फुत्ता कईम खाँ, बहादुर सिंह, नूना देवी, मंजू शाह तथा सरजुद्दीन खान को राष्ट्रद्रोह के अपराध में बालापानी भेज दिया गया।  

 

सोनपुर के जागीरदार चैनशाह और प्रतापगढ़ के जागीरदार राजबा शाह

गोंड जमींदार

> 1818 के समय अप्पा जी भोंसले को अंग्रेजों से बचाया

 

> छिंदवाड़ा के तत्कालीन प्रशासक माण्ट गोमरी ने लिखा "इन पार्वत्य सामंतों ने ब्रिटिश सत्ता का प्रतिरोध किया।" इस प्रतिरोध के अपराध में कम्पनी सरकार ने दोनों सार्मतों को बंदी बनाकर चाँदा जेल भेज दिया।

 

गोंड जागीरदार महावीर सिंह

  ________

> तात्या टोपे को सहायता दी

 

रामाधीन गोंड

दुर्ग क्षेत्र

> 1939 में दुर्ग जिले के वनाच्छादित क्षेत्र में रामाधीन गोंड ने जंगल सत्याग्रह छेड़ा |

 

 

राजनीतिक क्षेत्र में

स्वतंत्रता के दौरान संविधान सभा में यह मांग निश्चित रूप मे सभी ने स्वीकार की कि दलित एवं वंचित वर्गों का राजनीति में भी उचित प्रतिनधित्व हो ताकि इतने समय से झेल रही पीड़ाओं से वे निकलकर समाज की मुख्य धारा मे जुड़ सकें ओर अपने अधिकारों की मांग कर सकें जिसे सफल बनाने में निम्न जनजातीय व्यक्तित्व ने भूमिका निभाई है –

 

भीमराव अंबेडकर

भारतीय संविधान के पिता बी. आर. अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को इंदौर जिले के महू में हुआ था। इन्हें 1990 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया

 

अंबेडकर द्वारा ही सबसे पहले दलितों के लिए प्रथक राजनीतिक अधिकार की मांग रखी गई थी जो गांधी जी से विरोध के कारण उस समय आरक्षण के में स्वीकृत हुई

 

और स्वतंत्रता के पश्चात भी संविधान मे जनजातियों के सामाजिक ,राजनीतिक एवं आर्थिक अधिकारों को शामिल करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई |

 

 

इनकी मृत्यु 1956 में हुई तथा इनका समाधि स्थल चैत्य भूमि मुम्बई में स्थित है।

 

प्रमुख संगठन - बहिष्कृत हितकारिणी सभा, समता सैनिक दल, डिप्रेस्ड क्लासेस एज्युकेशन सोसायटी, द बाँबे शेड्युल्ड कास्ट्स इम्प्रुव्हमेंट ट्रस्ट, पिपल्स एज्युकेशन सोसायटी, भारतीय बौद्ध महासभा और इंडीपेंडेंट लेबर पार्टी।

 

प्रमुख पुस्तकें - मूकनायक, रुपए की समस्या, बहिष्कृत भारत, जाति विच्छेद, संघ बनाम स्वतंत्रता, पाकिस्तान पर विचार ।

 

2023 में, तेलंगाना के हैदराबाद शहर में भीमराव अम्बेडकर की 132 वीं जयंति पर 125 फुट ऊँची प्रतिमा का अनावरण किया गया है।

 

श्री नरेश चंद्र सिंह (गोंड जनजाति)

 

इनका जन्म रायगढ़ (छत्तीसगढ़) में हुआ ,सारंगगढ़ रियासत से संबंधित थे |

 

ये मध्यप्रदेश के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री रहे हैं ,ओर इनका कार्यकाल मात्र 13 दिनों का रहा था | मध्यप्रदेश के आदिम जाति कल्याण मंत्री भी रहे हैं |

 

जमुना देवी – बुआ जी उपनाम

 

जन्म धार में हुआ था ,और इनका निर्वाचन क्षेत्र झाबुआ था |

 

1998 में मध्यप्रदेश की पहली महिला उपमुख्यमंत्री बनी  |

एमपी. की पहली महिला प्रोटेम स्पीकर और नेता प्रतिपक्ष रही हैं |

 

फगगन सिंह कुलसते – मंडला

 

राज्यसभा ,लोकसभा रहें हैं | वर्तमान में केंद्र सरकार में इस्पात मंत्रालय के राज्य मंत्री बनाए गए है

 

उमर सिंघर – धार

 

वर्तमान में मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं |

 

कुँवर विजय शाह – हरसूद, खंडवा

 

वर्तमान मप्र. विधानसभा में जनजातीय कार्य मंत्री है |

 

कांतिलाल भूरिया – झाबुआ में जन्में

 

झाबुआ ,रतलाम लोकसभा से निर्वाचित हुए थे

15 वीं लोकसभा में जनजातीय मामलों के मंत्री पद पर रहे |

 

दिलीप सिंह भूरिया

 

राष्ट्रीय जनजाति आयोग के अध्यक्ष रहें है |

 

पेसा कानून 1996 बनाने मे महती भूमिका निभाई और इन्ही के नेतृत्व में तेंदुपत्ता नीति का निर्माण करने के लिए भूरिया कमिटी का गठन किया गया |

 

सामाजिक क्षेत्र में जनजातीय व्यक्तित्व

 

इसमें हम उन व्यक्तियों को देखेंगे जिन्होनें जनजातियों को समाज मे अपना सही स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिनमें अंबेडकर को भी शामिल किया जाता है इसके अलावा अन्य निम्न हैं-

 

अमृतलाल विठलदास

 

अमृतलाल विट्ठलदास ठक्कर गुजरात के भावनगर में जन्में, इन्हें आदिवासियों का मसीहा कहा जाता है।

 

जनजातीय लोगों के उत्थान के लिए इन्होंने कार्य किया।

 

इन्हें प्रायः "ठक्कर बापा" के नाम से जाना जाता है।

 

यह भारतीय संविधान सभा के भी सदस्य थे तथा वर्ष 1905 में गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा स्थापित "सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसायटी" के सदस्य बने ।  

 

नीलेश देसाई

 

मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में सन 1987 से भील और भिलाला समुदाय के उत्थान के लिए काम कर रहे नीलेश देसाई को इस वर्ष के प्रतिष्ठित जमनालाल बजाजपुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

 

बालेश्वर दयाल

 

मामा बालेश्वर दयाल का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ था, लेकिन इनकी कर्मस्थली झाबुआ जिला रहा है।

 

यह प्रसिद्ध समाज सेवी नेता थे, इन्हें भीलो का गाँधी कहा जाता है।इनका निधन 1998 में हुआ है।

  

शिवभानु सिंह सोलंकी

 

जिला धार निवासी स्वर्गीय श्री शिवभानू सिंह सोलंकी ने राजनीति एवं समाज सेवा दोनों में सक्रिय और सराहनीय भूमिका निभायी। आप 1980 से 1985 तक म.प्र. के प्रथम आदिवासी उपमुख्यमंत्री रहें।   

 

कला के क्षेत्र में जनजातीय व्यक्तित्व

 

मध्यप्रदेश प्राचीन कल से ही कला क्षेत्र में समृद्ध रहा है , फिर चाहे वह भीमगढ़ की गुफा हो , मुरैना में स्तिथ पहाड़गढ़ की गुफा या बाग की गुफाएं ये मध्यप्रदेश की कला में विकास को परिलक्षित करती हैं |

          इन्हीं कलाओं को आगे बढ़ाने में मध्यप्रदेश के कई जनजातिय व्यक्तियों  ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया ओर इन कलाओं को विश्व पटल पर विश्वसनीयता प्रदान की है , जिसका उदाहरण हम प्रधानमंत्री द्वारा ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री को गोंड पेंटिंग उपहार स्वरूप देने के रूप मे देख सकते है |

 

जनजातीय कलाकार

 

संबंधित जिला

कला एवं उसकी सामान्य जानकारी

भूरी बाई,भील

झाबुआ

> पिथौरा चित्रकला के लिए 2021 में पद्मश्री से सम्मानित मध्यप्रदेश की प्रमुख चित्रकार है। जो अपनी चित्रकला में पेपर का उपयोग करती है।

 

> यह पिथौरा चित्रकला के लिए प्रसिद्ध भील जनजाति की प्रथम महिला कलाकार है।

 

> केनवास का प्रयोग करने वाली यह प्रथम भील कलाकार है। इन्हें वर्ष 2021 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

 

> वर्तमान में यह आदिवासी लोक कला अकादमी, भोपाल में कलाकार के रूप में कार्यरत है।

 

> इन्हें मध्यप्रदेश सरकार द्वारा शिखर सम्मान तथा अहिल्या बाई सम्मान से सम्मानित किया गया है।

 

पेमा फात्या भील

झाबुआ /अलीराजपुर

> यह पिथौरा चित्रकला के प्रसिद्ध चित्रकार है। इस चित्रकला में घोडे के चित्र का अंकन किया जाता है।

 

> मध्यप्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 1986 में इन्हें शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया है।

 

> इन्हें वर्ष 2017 में संस्कृति विभाग द्वारा तुलसी सम्मान से सम्मानित किया गया है।

 

> निधन – 2020

 

शांता भूरिया

झाबुआ

> भील जनजाति की चित्रकार भूरी बाई की पुत्री है

 

 

> इन्होनें अपने चित्रों में पिथौरा देव पर्यावरण व जनजातीय कथाओं का चित्रण किया है

 

गंगू बाई

झाबुआ

> भील जनजाति की चित्रकार

 

लाड़ो बाई

झाबुआ 

> भील जनजाति की चित्रकार जो भील समुदाय के रीति रिवाज और पशु जीवन के चित्रों के लिए जाने जानी वाली चित्रकार है |

 

> 1996 में इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा लोकरंग फेलोशिप पुरुस्कार से सम्मानित |

 

जनगढ़ सिंह श्याम 

पाटनगढ़, डिंडोरी  

> प्रसिद्ध गोंड चित्रकार हैं |

 

> जापान के टोकामाची के मिथिला संग्रहालय में 2001 में मृत्यु हुई ।

 

> इन्हें भारतीय कला के नये स्कूल जंगल कला के निर्माता के रूप में जाना जाता है।

 

> गोंड चित्रकला में सर्वप्रथम कागज और केनवास का उपयोग करने वाले प्रथम चित्रकार है।

 

> मिशैल अब्दुल करीम क्राइट्स द्वारा इन पर एक पुस्तक की रचना की गई है। (जनगदसिंह श्याम द एनचनटेड फोरेस्ट )

 

> इन्हें 1986 में सर्वाच्च शिखर सम्मान से पुरस्कृत किया गया है।

 

> इनके द्वारा मध्यप्रदेश विधान सभा और भोपाल के भारत भवन के गुम्बद को चित्रित किया गया था।

 

> यह विशेष रूप से गोंड देवता के चित्रों का अंकन करते हैं।

भज्जु सिंह श्याम

पाटनगढ़, डिंडोरी  

> पद्म श्री 2018 से सम्मानित भज्जु सिंह श्याम प्रसिद्ध गोंड चित्रकार है।

 

 

> इनके चित्र ‘द लंदन जंगल बुक ‘मे शामिल हैं |

 

> पाटनगढ़ को 'चित्रकारों का गाँव' कहा जाता है।

 

दुर्गाबाई व्याम

डिंडोरी जिले

> दुर्गाबाई व्याम प्रसिद्ध गोंड चित्रकार है।

 

> इसका संबंध डिगना / गोंड चित्रकला से है।

 

> 2022 में इन्हें पद्म श्री सम्मान से सम्मानित किया गया

 

कलावती श्याम

डिंडोरी जिले

> यह अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए केनवास और ब्रश का इस्तेमाल जलेनेवाली प्रथम गोंड परधान महिला है।

 

> इनकी चित्रकारी में बाघ का विशेष रूप से अंकन किया जाता है।

 

> मध्यप्रदेश से विभाजित होकर छत्तीसगढ़ राज्य बनाया गया, तब कलाबाई और आनंद सिंह श्याम द्वारा मध्यप्रदेश का नया नक्शा बनाया गया, जिसे तत्कालिन राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम द्वारा विमोचित किया गया।

 

जोधाईया बाई

उमरिया ,लोहार गाँव

> बैगा जनजाति की प्रमुख चित्रकार

 

> 2021 में नारी शक्ति सम्मान और 2023 में पद्मश्री पुरुस्कार से सम्मानित

 

अर्जुन सिंह धुरवे

डिंडोरी

> बैगा जनजाति के प्रमुख कलाकार जो परधोनी एवं बैगा नृत्य करते हैं |

 

>2022 में पद्मश्री पुरुस्कार से सम्मानित

 

लहरी बाई बैगा

डिंडोरी

> मोटा अनाज संरक्षण के लिए पादप जीनोम संरक्षक पुरुस्कार से सम्मानित

 

> इन्हें मिलेट क्वीन नाम से भी जाना जाता है |

 

शांति एवं रमेश परमार

झाबुआ

> परमार दंपति पिछले 30 साल से आदिवासी वेशभूषा की गुड़िया बना रहे हैं।

 

> 2023 के पद्मश्री से सम्मानित किया गया |

 

बत्तो बाई

ग्वालियर

> पुराने कपड़ों से अलग-अलग तरह की आकर्षक व सुंदर गुड़िया बनाकर देश ही नहीं, बल्कि दुनिया में इस कला को एक नया रूप देने वाली बत्तो बाई ही है। बत्तो बाई को उनकी इस कला के लिए कई जगह सम्मानित किया गया।

इस्माइल सुलेमान खत्री

धार जिला

> बाघ प्रिन्ट के मशहूर कलाकार एवं इन्हें बाघ  प्रिन्ट का जनक का कहा जाता है |

मुबारिक खत्री,यूसुफ खत्री,रशीदा बी खत्री,बिलाल खत्री 

धार जिला

< सभी बाघ प्रिन्ट से संबंधित कलाकार हैं |

 

< मुबारिक खत्री को 2021 में ‘मास्टर आर्टिसॉन ऑफ द एयर ‘ से सम्मानित किया गया है    

 

< यूसुफ खत्री को 2017 का शिल्प गुरु पुरुस्कार मिला था

 

< रशीदा बी खत्री को 2018 मे राष्ट्रीय मेरिट पुरुस्कार बाघ प्रिन्ट की बारीक कारीगरी के लिए दिया गया था
   

रामसहाय पांडे  

सागर

< 2022 पद्मश्री से सम्मानित

 

< आपने राई जैसे परंपरागत नृत्य को मृदंग के साथ लेकारी देकर उसे एक नई पहचान दिलाई है |

 

अवध किशोर जड़िया

छतरपुर

< 2022 पद्मश्री से सम्मानित

 

< बुंदेलखंड के वरिष्ठ बुंदेली कवि एवं आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं। डॉ. जड़िया ने वंदनीय बुंदेलखंड ,उद्धव शतक, कारे कन्हाई के कान और विराग माला जैसी कविताएं लिखी है।

 

तीजन बाई

छत्तीसगढ़

< पंडवानी गीत के लिए प्रसिद्ध 

 

सूरज बाई खांडे 

बिलासपुर ,छत्तीसगढ़

< भरथरी गायिका है

 

असगरी बाई

छतरपुर

< प्रसिद्ध ध्रुपद गायिका असगरी बाई का जन्म वर्ष 1918 में छतरपुर जिले के अन्तर्गत बिजावर रियासत में हुआ था।

 

< इन्हें वर्ष 1990 में पद्मश्री वर्ष 1985 में तानसेन सम्मान और वर्ष 1986 में शिखर सम्मान प्रदान किया गया। 29 अगस्त, 2006 को टीकमगढ़ में इनका निधन हो गया।

सुभाष अमालियार

झाबुआ

< भील चित्रकला के कलाकार

अनीता बरिया

झाबुआ

< पितौल की भूरी बाई की 15 वर्षीय पुत्री अनिता बरिया ने छह वर्ष की आयु से चित्रकारी शुरू कर दी थी। प्रकृति उनका मुख्‍य विषय है। वह अपनी माता की तरह एक दिन चित्रकार बनना चाहती हैं। अनिता के जीजा विजय बरिया ने भी हाल ही में चित्रकारी शुरू की है।

रमेश कटारिया

भील कलाकार

< रमेश कटारिया आईजीआरएमएस में दिहाड़ी पर कार्य करते हैं। उन्‍होंने अभी हाल में ही कागज पर चित्र बनाना शुरू किया है। उन्‍हें गंगू बाई तथा भूरी बाई के चित्रों से प्रेरणा मिली थी। उनकी मुख्‍य विषय-वस्‍तुएं भील देवकुल की देवी-देवताएं, लोक गाथाओं के दृश्‍य हैं।

सुभाष भील

झाबुआ

सुभाष भील, गंगू बाई के पुत्र विगत 4 वर्षों से चित्रकारी करते आ रहे हैं। उन्‍हें चित्रकारी करने की प्रेरणा अपनी माता से मिली। वे भोपाल में दिहाड़ी पर कार्य करते हैं। जब सुभाष पिता बने तो उन्‍होंने पशु और पक्षियों के उनके बच्चों के साथ चित्र बनाए। जब वे झबुआ जाते हैं तो वे गट्लास, गड बप्‍सी तथा गल बप्‍सी के चित्र बनाते हैं। कभी-कभी वे गड बप्‍सी अथवा गल बप्‍सी के केवल लकड़ी के ढांचों के चित्र बनाते हैं जैसा वह लोगों के आगमन से पूर्व हुआ करते थे। सुभाष भील के भाई, दिनेश तथा राकेश ने भी चित्रकारी शुरू की है और वह पशु एवं पक्षियों पर कूची चलाना पसंद करते हैं।

अन्य गोंड कलाकार

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आनंद सिंह श्‍याम,भज्‍जू श्‍याम,बीरबल सिंह उइकी,छोटी टेकम,धनइया बाई,धावत सिंह उइकी,दिलीप श्‍याम,दुर्गा बाई,गरीबा सिंह टेकम,हरगोविंद सिंह उरवेटी,हरिलाल ध्रूवे,इंदुबाई मरावी,ज्‍योति बाई उइकी,कला बाई,कमलेश कुमार उइकी,लखनलाल भर्वे,मन्‍ना सिंह व्‍याम,मानसिंह व्‍याम,मयंक कुमार श्‍याम,मोहन सिंह श्‍याम,ननकुसिया श्‍याम,नर्मदा प्रसाद टेकम,निक्‍की सिंह उरवेटी,प्रदीप मरावी,प्रसाद कुसरामप्रेमी बाई

आदि कलाकार है |

 


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