स्वतंत्रता आंदोलन में मध्यप्रदेश का योगदान: MPPSC परीक्षा के GS-1 के भाग-अ (इतिहास) – इकाई-4 का एक महत्वपूर्ण topic है | यह Topic मध्यप्रदेश के इतिहास (History of Madhya Pradesh in Hindi) से संबंधित है| मध्यप्रदेश की अन्य सभी परीक्षा मे यह महत्वपूर्ण है |
स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के स्वर्णिम अध्यायों में से एक है, और इस युद्ध के दौरान मध्यप्रदेश ने भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम खोजेंगे कि स्वतंत्रता संग्राम के समय मध्यप्रदेश के वीर और महान स्वतंत्रता सेनानियों ने कैसे अपने जीवन को स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित किया, आखिर मध्यप्रदेश का इतिहास(History of Madhya Pradesh) क्या है ? 1857 में मध्यप्रदेश और इस स्वतंत्रता आंदोलन में मध्यप्रदेश का योगदान क्या था? इसके साथ ही, हम जानेंगे कि MPPSC (मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग) परीक्षा के प्रतियोगी अभ्यर्थियों के लिए इस विषय (मध्यप्रदेश के इतिहास- History of Madhya Pradesh) के महत्वपूर्ण अंश क्या हैं | इस आर्टिकल में मध्यप्रदेश के इतिहास(History of Madhya Pradesh in Hindi) से संबंधित-स्वतंत्रता आंदोलन में मध्यप्रदेश का योगदान (MPPSC-Mains/Pre) की विस्तृत चर्चा करेंगे , ताकि परीक्षा मे आपसे सभी प्रश्न सरलता से बन जाएँ |
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History of Madhya Pradesh |
मध्यप्रदेश में स्वतंत्रता आंदोलन - (History of Madhya Pradesh)
मध्यप्रदेश में स्वतंत्रता आंदोलन, भारत में संचालित आंदोलनों के समान ही निरंतर गति में संचालित रहते थे ,जिसकी व्यापक छवि हमें महकौशल विद्रोह से लेकर 1857 का संग्राम और स्वतंत्रता प्राप्त होने तक दिखायी देती है | मध्यप्रदेश की स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका को समझने के लिए हम उसे विभिन्न चरणों में विभाजित कर सकते है जो निम्नलिखित है-
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मध्यप्रदेश में स्वतंत्रता आंदोलन |
1857 की क्रांति के पूर्व –
1857 की क्रांति एक निश्चित परिणिती थी,जिसके कारण 1857 से पूर्व की ब्रिटिश साम्राज्यवादी,धार्मिक,आर्थिक एवं सामाजिक नीतियाँ थी,जिनके विरोध के लिए भारत में 1857 के पहले ही कई विद्रोह एवं आंदोलन हुए इसी क्रम में मध्यप्रदेश में भी कुछ
विद्रोह हुए जिन्होंने 1857 की क्रांति को व्यापक जन आधार प्रदान किए -
- कुँवर चैन सिंह का विद्रोह
- बुंदेला विद्रोह
- महकौशल क्षेत्र का विद्रोह
कुँवर चैन सिंह का विद्रोह –
कारण:-
- 1818 का भोपाल के नवाब(नजर मोहम्मद) एवं ब्रिटिश कंपनी के मध्य समझौता- इसके अंतर्गत सीहोर में एक हजार सैनिक छावनी की स्थापना का प्रावधान था जिनकी वेतन पूर्ति की जिम्मेदारी भोपाल रियासत पर थी,जिसके द्वारा अपने नजदीक के राजगढ़,खिलचिपुर ,नरसिंहगढ़ रियासत के राजनीतिक आधिकार कंपनी को ही सौंप दिए गए|
- नरसिंहगढ़ के राजकुमार कुँवर चैन सिंह द्वारा इसका विरोध किया गया ,इस गतिरोध को सुलझाने के लिए अंग्रेज एवं चैन सिंह के मध्य बैठक हुई जिसमें चैन को दो प्रस्ताव दिए गए –
- नरसिंहगढ़ की रियासत अंग्रेजों को सौंप दी जाए
- .नरसिंहगढ़ में अफीम उत्पादन के अधिकार अंग्रेजों को सौंप दिए जाए, परंतु राजकुमार द्वारा दोनों प्रस्ताव ठुकरा दिए गए |
- रियासत की गोपनीय जानकारी दीवान आनंद राम और मंत्री रूपराम बोहरा द्वारा अंग्रेजों को पँहुचाने के कारण कुँवर ने दोनों को मौत की सजा दे दी जिसके कारण अंग्रेजों द्वारा कुंवर चैन सिंह पर अभियोग चलाया गया, यह भी विद्रोह का कारण बना |
विद्रोह:-
24 जुलाई 1824 को मैडोक द्वारा चैनसिंह को सीहोर बुलाया गया |चैनसिंह अपने सहायक हिम्मत खान एवं बहादुर शाह के साथ सीहोर पँहुचे एवं दशहरा मैदान में युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए | वर्तमान में कुँवर चैन सिंह की समाधि सीहोर में है |
विशेष
- इन्हें मध्यप्रदेश का प्रथम शहीद और मध्यप्रदेश का मंगल पांडे कहा जाता है|
- शासन द्वारा प्रति वर्ष जुलाई माह में इनके सम्मान में कार्यक्रम आयोजित कर गार्ड ऑफ़ ऑनर दिया जाता है।
- प्रतिवर्ष 24 जुलाई को इनकी पुण्यतिथि कौमी एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है |
बुंदेला विद्रोह:-
- कारण:- अंग्रेजों की भू-राजस्व एवं वसूली तथा अन्य नीतियों से असंतुष्टि|
- पृष्ठभूमि:- बुढ़वा मंगल आयोजन (1835,1836 )
- प्रमुख नेता:- हिरापुर के हिरदेशाह ,नरहुत के मधुकर शाह,जैतपुर के परीछत |
- विद्रोह एवं दमन:- नेताओं द्वारा प्रारंभ इस विद्रोह को कर्नल स्लीमन द्वारा षडयंत्रपूर्वक (बखतबली, मर्दनशाह की सहायता से) दमन किया गया |
- विशेष:- इस विद्रोह के कुछ युद्ध –बिलगावँ का युद्ध,पनवारी का युद्ध आदि |
- महत्व:- जनचेतना का विकास हुआ,जिसे इस रूप में देखा सकता है की 1857 विद्रोह में अधिकांश नेता बुंदेलखंड क्षेत्र से ही थे |
महकौशल क्षेत्र का विद्रोह :-
- कारण:- अंग्रेजों द्वारा सागर,दमोह क्षेत्र पर कब्जा |
- विद्रोह:- 1818 में अप्पा जी भोंसले द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध |
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1857 की क्रांति :-
मई 1857 में मेरठ से प्रारंभ स्वतंत्रता
संग्राम में भाग लेने वाले प्रांतों में मध्य भारत के प्रांतों की सर्वाधिक सक्रिय
भूमिका रही है, जिसमें मध्यप्रदेश का महत्वपूर्ण स्थान है | मध्यप्रदेश में
क्रांति का प्रारंभ 3 जून 1857 नीमच छावनी से
हुआ जिसका विस्तार शीघ्र ही सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में हो गया वे क्षेत्र हैं –
- प्रमुख छावनी विद्रोह
- मध्यप्रदेश के विभिन्न भागों में विद्रोह
- मालवा क्षेत्र
- बघेलखण्ड क्षेत्र
- महकौशल क्षेत्र
- भोपाल की क्रांति
- क्रांति में महिलाओं का योगदान
- जनजातीय व्यक्तियों का योगदान
- अन्य प्रमुख नेत्रत्वकर्ता एवं क्षेत्र
प्रमुख छावनी विद्रोह:-
नीमच छावनी:-
- प्रारंभ 3 जून 1857 |
- प्रमुख नेता –सैनिक मोहम्मद अली बेग,हीरालाल |
- कर्नल सी सोबर्स ने राजपूत सैनिकों की सहायता से इसका दमन किया |
मुरार छावनी:- प्रारंभ 14 जून
1857 को हुआ |
शिवपुरी छावनी:- प्रारंभ 20 जून 1857 |
महू छावनी:-
- प्रारंभ- 1 जुलाई 1857 को महू से |
- नेतृत्व -मुराद अली खाँ
- कर्नल डूरेंड द्वारा शीघ्र ही इंदौर एवं महू पर अधिकार कर लिया गया |
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मध्यप्रदेश के विभिन्न भागों में होने वाला विद्रोह :-
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी मेरठ से उठी थी, जिसकी ज्वाला शीघ्र ही पूरे भारत में फैल गई । मध्यप्रदेश में विभिन्न अंचलों में इसका प्रभाव देखा गया ।
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1857 मे मध्यप्रदेश |
मालवा में 1857 का विद्रोह :-
- 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी से जो स्वतंत्रता का बिगुल बजा शीघ्र ही उसकी गूंज मालवा के विभिन्न अंचलों में सुनाई दी।
- मध्य भारत में विद्रोह की शुरुआत 3 जून, 1857 को नीमच से हुई यहाँ विद्रोही सैनिकों द्वारा शस्त्रागार लूट कर छावनी में आग लगा दी गई।
- नीमच में हुए विद्रोह की सूचना शीघ्र ही इन्दौर (6 जून. 1857) पहुँचती है। इन्दौर में सआदतखान के नेतृत्व में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।
- सैनिकों ने कर्नल ड्यूरेड को मारने का प्रयास किया परन्तु वह बच निकला।
- इन्दौर के बाद महू छावनी में विद्रोह हुआ जिसका नेतृत्व मुरादअली खान ने किया। सैनिकों ने शस्त्रागार लूट कर सरकारी कार्यालय में आग लगा दी ।
- इसके पश्चात् नीमच, इन्दौर, महु के सैनिक ग्वालियर, आगरा, दिल्ली की ओर बढ़े।
- शीघ्र ही कर्नल ड्यूरेण्ड ने विद्रोहीयों का दमन कर पुनः इन्दौर,महु पर अधिकार कर लिया।
- इन्दौर में हुए विद्रोह की सूचना अमझेरा (धार) पहुँचती है, जहाँ के शासक राजा बख्तावर सिंह ने अमझेरा की स्वतंत्रता के लिए विद्रोह कर दिया।
- इनके दीवान गुलाबराय ने भोपाल में ब्रिटिश पॉलीटिकल एजेंट (हैचन्सन) के यहाँ लूटमार कर आक्रमण कर दिया जिसके पश्चात् हैचन्सन ने शीघ्र ही सेना संगठित कर अमझेरा पर आक्रमण कर दिया, जिसमें राजा बख्तावर सिंह मारे जाते है। यह मालवा में विद्रोह करने वाले प्रथम शासक थे।
बघेलखंड में 1857 का विद्रोह :-
- प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का विद्रोह शीघ्र ही विभिन्न अंचल में फैल गया। बघेलखण्ड में स्वतंत्रता की इच्छा रखने वाले कई सैनानियों ने विद्रोह कर दिया। इसमें प्रमुख रूप से जगदीशपुर के कुँवरसिंह, मनकहरी के रणमतसिंह व विजयराघोगढ़ के. सरजूठाकुर थे।
- जगदीशपुर के कुँवरसिंह विद्रोह करके रानी लक्ष्मीबाई की सहायता हेतु आगे बढ़ रहे थे इस क्रम में उन्होंने रीवा शासक रघुराज से सहायता मांगी परन्तु इन्होंने कुँवरसिंह की सहायता न कर अंग्रेजो का समर्थन किया। जिसके पश्चात कुँवरसिंह बाँदा चले गए।
- रीवा में मनकहरी के ठाकुर रणमतसिंह का विद्रोह प्रमुख था। यह नौगाँव छावनी के कप्तान थे। इन्होंने अंग्रेज अधिकारी ओसबन के खिलाफ मोर्चा खोला, परन्तु असफल रहे उसके बाद वह रानी लक्ष्मीबाई की सहयता हेतु निकले। रानी की पराजय के बाद पुनः रीवा लौटे जहाँ अंग्रेजों ने पकड़ कर इन्हें मृत्युदण्ड दे दिया।
- विजय राघोगढ़ के नवयुवक सरजूठाकुर का विद्रोह भी महत्वपूर्ण रहा इन्हें अंग्रेजों ने मृत्युदण्ड दे दिया।
नर्मदा सागर क्षेत्र (महाकौशल) 1857 का विद्रोह:-
शंकर शाह, रघुनाथ शाह:-
- महाकौशल क्षेत्र में भी विभिन्न क्रांतिकारियों ने इस संग्राम में भाग लिया जिसमें प्रमुख रूप से जबलपुर में शंकरशाह व रघुनाथशाह, रामगढ़ में रानी अवंती बाई होशंगाबाद में दौलतसिंह, नरसिंहपुर में ठाकुर गजेन्द्रसिंह थे।
- जबलपुर में रानी दुर्गावती के वंशज शंकरशाह व रघुनाथ शाह ने क्रांति का नेतृत्व किया। इन्होंने अंग्रेजों से संघर्ष हेतु अपने लोगो को संगठित कर गोटीया' नामक दल का गठन किया |जिसका उद्देश्य जबलपुर छावनी पर आक्रमण कर उस पर अधिकार करना था।
- शंकरशाह व रघुनाथशाह की योजना अंग्रेजों को पता चल गई जिसके पश्चात् अंग्रेजो ने इन्हें गिरफ्तार कर राजद्रोह का मुकदमा चलाया एवं इन्हें तोप से बांधकर उड़ा दिया गया।
रानी अवंतीबाई :-
- 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जिन महान वीरांगनाओं ने अपने साहस शौर्य व वीरता का परिचय दिया उनमें रामगढ़ की वीरांगना शासिका अवंतीबाई विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
- रामगढ़, मण्डला के समीप एक छोटी रियासत थी, जिसके शासक विक्रमसिंह थे। विक्रमसिंह का विवाह अवंतीबाई से हुआ। राजा की कम समय में मृत्यु हो गयी उस समय राजा निःसंतान थे एवं डलहौजी की गोदनिषेध प्रथा के कारण रामगढ़ रियासत पर अंग्रेजो ने अधिकार कर लिया।
- ब्रिटिश सरकार ने रामगढ़ रियासत में ब्रिटिश पॉलीटिकल एजेंट वार्डन की नियुक्ति की। जब 1857 का विद्रोह हुआ तब रानी ने अपनी सेना को संगठित कर बार्डन के खिलाफ "खेरी का युद्ध" लड़ा। इस युद्ध में अवंतीबाई ने कायर वार्डन को वीरता पूर्वक पराजित कर दिया।
- बार्डन ने पराजय देख रानी अवंतीबाई से क्षमा याचना मांग ली। रानी ने भारतीय परम्परा का अनुसरण करते हुए वार्डन को जीवनदान दे लिया। रानी की यही भूल उनके बलिदान का कारण बनी।
- पराजित बार्डन ने शीघ्र ही रीवा के शासक से सेना लेकर रानी के विरुद्ध घेरा डाल दिया।
- रानी ने 3 माह तक समय की प्रतीक्षा की परन्तु खाद्य सामग्री के अभाव में रानी अवंतीबाई को अपने साथियों के साथ बाहर निकलना पड़ा।
- बार्डन ने अवसर देख रानी पर आक्रमण कर दिया, रानी अपनी संरक्षिका गिरधारीबाई व अन्य 15 साथियों के साथ युद्ध लड़ा, इस युद्ध में लड़ते हुए रानी व उनके साथियों ने मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
- मध्यप्रदेश सरकार ने रानी अवंतीबाई के सम्मान में अवंतीबाई पुरस्कार की स्थापना की है।
भोपाल में 1857 की क्रांति :-
- 1857 का विद्रोह जब हुआ तब स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतंत्रता के लिए अपनी तलवार उठा ली। शीघ्र ही भोपाल में भी स्वतंत्रता की इच्छा रखने वाले क्रांतिकारियों में स्वतंत्रता का ज्वालामुखी फुट गया।
- भोपाल रियासत में क्रांति का सूत्रपात फाजिल मोहम्मद करते है इन्होंने रायसेन व सीहोर छावनी पर अधिकार कर आग लगा दी। इसके बाद भोपाल के विद्रोही सैनिक के साथ मिलकर संघर्ष किया।
- बैरसिया में क्रांति का नेतृत्व सुजादखान ने किया।
- भोपाल की शासिका सिकंदरजहाँ बेगम ने अंग्रेजों को समर्थन किया। इन्होंने विद्रोहियों के दमन हेतु अंग्रेजों की पूर्ण सहायता की ।
- भोपाल में महावीर व सैनिको ने सिपाही बहादुर का गठन किया व समान्तर सरकार बनाने का प्रयास किया परन्तु शीघ्र ही ह्युरोज ने विद्रोह दबा दिया।
- फाजिल मोहम्मद खान को भोपाल (फतेहगढ़) में फांसी दे दी गई।
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1857 की क्रांति में महिला (म.प्र.):-
मध्य प्रदेश में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अनवरत शृंखला का प्रारंभ हुआ,
जिसमें महिलायें भी पीछे नहीं थी बल्कि अंग्रेजों के पसीने छुड़ाने में अव्वल स्थान
पर रही |
रानी लक्ष्मी बाई:-
परिचय
- रानी लक्ष्मीबाई को झाँसी की रानी के नाम से भी जाना जाता है।वह झाँसी रियासत की रानी थीं तथा 1857 के भारतीय विद्रोह की प्रमुख व्यक्तित्त्वों में से एक थीं। उन्हें भारत में ब्रिटिश शासन के प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
- उनका जन्म 19 नवंबर, 1828 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनका वास्तविक नाम मणिकर्णिका था। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने मार्शल आर्ट का औपचारिक प्रशिक्षण भी लिया, जिसमें घुड़सवारी, निशानेबाजी और तलवारबाज़ी शामिल थी।
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
- रानी लक्ष्मीबाई स्वतंत्रता के लिये भारत के संघर्ष के बहादुर योद्धाओं में से एक थीं। वर्ष 1853 में जब झाँसी के महाराजा की मृत्यु हो गई, तो लॉर्ड डलहौजी ने गोद लिये गए बच्चे को उत्तराधिकारी के रूप स्वीकार करने से इनकार कर दिया और व्यपगत के सिद्धांत (Doctrine of Lapse) को लागू करते हुए राज्य पर कब्ज़ा कर लिया।
- रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज़ों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी ताकि झाँसी साम्राज्य को विलय से बचाया जा सके।
- 17 जून, 1858 को युद्ध के मैदान में लड़ते हुए उनकी मौत हो गई।
- जब भारतीय राष्ट्रीय सेना ने अपनी पहली महिला इकाई (1943 में) शुरू की, तो इसका नाम झाँसी की बहादुर रानी के नाम पर रखा गया था।
रानी झलकरी बाई:-
- झलकारी बाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की महिला सेना 'दुर्गादल' की सेनापति थीं। उनका जन्म 22 नवंबर, 1830 को झाँसी के पास भोजला गाँव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था।झलकारी बाई लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिये वे रानी के वेश में लड़ती थीं।
- 1857 की लड़ाई में झाँसी पर अंग्रेजों ने हमला कर दिया। झाँसी का किला अभेद्य था, पर रानी का एक सेनानायक गद्दार निकला। नतीजतन अंग्रेज़ किले तक पहुँच गए।
- जब रानी लक्ष्मीबाई शत्रुओं से घिर गई तब झलकारी ने कहा आप यहाँ से जाइये, मैं आपकी जगह लड़ती हूँ। रानी वहाँ से चली गई और झलकारी उनके वेश में लड़ती रहीं। झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोककथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है।
रानी अवन्ति बाई:-
- विद्रोह क्षेत्र-रामगढ़
- अवन्ति बाई ने अंग्रेज सेनापति वार्डेन को हराया |
- अवन्ति को रामगढ़ की लक्ष्मी बाई भी कहा जाता है |
- इनकी समाधि डिंडोरी जिले के बलपुर में स्थित है |
गिरधारी बाई:-
- विद्रोह क्षेत्र- रामगढ़
- गिरधारी बाई अवन्ति बाई की संरक्षिका थी |
रानी तपस्वनी:-
- इनका वास्तविक नाम सुनंदा था, ये रानी लक्ष्मी बाई की भतिजी थी |
- 1857 की क्रांति में अंग्रेजों नें तिरुचिरापल्ली जेल में कैद कर दिया था |
रानी द्रौपदी
बाई:-
- विद्रोह क्षेत्र- मध्यभारत,धार |
- 22 मई 1857 को धार के राजा की मृत्यु के पश्चात इन्होंने विद्रोह को संभाला |
- कर्नल डुरेंड़ ने द्रौपदी बाई के विद्रोह को दबाने में सफलता हासिल की |
संग्राम के प्रमुख जनजातीय विद्रोह:-
स्वाभिमानी
स्वतंत्रता प्रिय जनजातियों ने तो आरम्भ से ही विदेशी सत्ता को नकार दिया था। सन्
1857 में मुक्ति संग्राम की चिंगारी जब उत्तर भारत होती हुई मध्यभारत पहुँची तो
मालवा-निमाड़ के जनजाति भील-भिलाला नायकों ने मोर्चा थामा। इन नायकों में टंटया भील, भीमा नायक, खाज्या
नायक, सीतराम कंवर और रघुनाथ सिंह मंडलोई आदि ने संघर्ष का गौरवपूर्ण इतिहास
रचा। जनजाति क्रांतिनायकों के साथ बरुद के श्यामसिंह, अकबरपुर
के रेउला नायक, मकरोनी परगना के कल्लू बाबा, नाना
जगताप, दौलत सिंह, टिक्का
सिंह, परगना सिकन्दर खेरा के निहाल सिंह के अतिरिक्त फौजी टीकाराम जमादार और
जवाहर सिंह ने मिलकर अनूठा संघर्ष किया।
टंट्या भील :-
- सन् 1857 क्रांति के दिनों में सम्पूर्ण मालवा, निमाड़ में क्रांतिकारियों का जाल फैला था।खरगौन और उसके आसपास का क्षेत्र क्रांतिकारियों का प्रमुख केन्द्र था। जनजाति क्रांतिकारियों की श्रंखलाबध्द व्यवस्था अद्भुत थी। एक नायक के बलिदान होते ही दूसरा नायक मोर्चा थाम लेता था ताकि क्रांति अनवरत चलती रहे। इन भील जननायकों में टंटया भील तो अपने शौर्य और पराक्रम से अलौकिक किवंदंती बन गये।
- टंटया भील का जन्म सन् 1842 के आसपास हुआ। मात्र 16 वर्ष की आयु में वह क्रांतिवीर हो गये। वह हजारों बहनों का भाई और तरुणों का मामा था। संकट में लोग टंटया मामा को पुकारते। वह हवा की तरह आता, लोगों को शोषण से मुक्त करवाता और अगले मोर्चे पर चल देता।
- उसने अंग्रेजों के चाटूकार सेठ-साहूकारों के चंगुल से दीन-हीन गरीबों को मुक्ति दिलाई, अंग्रेजों से लगातार संघर्ष किया और जनयोध्दा बन गया। यही नहीं वन में शरण के लिए आये सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों का वह आश्रयदाता भी था।
- 15 सितम्बर 1857 को उसकी भेंट क्रांति के महानायक तात्या टोपे से हुई। उसने तात्याटोपे से गुरिल्ला युध्द का प्रशिक्षण प्राप्त किया। टंटया के जीवन का एकमात्र उद्देश्य था शोषकों को दण्ड देना और हर गरीब को उसका हक दिलाना।
- उसने अंग्रेजों के विरुध्द उस अग्नि को और प्रज्ज्वलित किया जो वनांचलों और पर्वतों की तहलटियों में बसे टोलों में उसके जन्म से भी पहले नादिर सिंह, चीलनायक, सरदार दशरथ, हिरिया, गौंडाजी, दंगलिया, शिवराम पेंडिया, सुतवा, उचेत सिंह और करजर सिंह आदि नायकों ने सुलगाई थी। टंटया के आक्रामक मोर्चों से अंग्रेज बौखला गये। उसे पकड़ने के लिए पुलिस बिग्रेड तक की स्थापना कर दी गई पर अंग्रेजी फौज उस तक पहुँच न सकी।
- नर्मदा किनारे मध्यप्रदेश और गुजरात की पट्टी का शेर और झाबुआ वेस्ट के भीलों के आदर्श टंटया को पकड़ना आसान न था। अंतत: अंग्रेजों ने छल, बल का सहारा लिया, मानसिंह ने गद्दारी का इतिहास रचा। 4 दिसम्बर सन् 1889 को फाँसी पर चढ़कर शोषितों का सहारा और शोषकों को छका देने वाला मसीहा टंटया भील बलिदान हो गया।
भीमा नायक:-
- 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मालवा-निमाड़ क्षेत्र में भीमा नायक ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया था महादुर सर्वदनशील तथा प्रारंभ से ही पहाड़ व जंगलों की गोद में पले-बढ़े भील, कंपनी के सरकार के लिये मालवा-निमाड़ क्षेत्र में भीषण संकट बन गए। भीमा नायक व उनके साथियों ने कई बार सरकारी खानों को लूटा।
- भीमा नायक इस क्षेत्र में इतने प्रभावी और लोकप्रिय थे कि अनेक युवक बिना वेतन के उनके फौज टुकड़ी में शामिल हो गए थे। भीमा नायक को जब अंग्रेज नहीं पकड़ पाए तब उनके रिश्तेदारों एवं जानने वालों को दंड एवं प्रलोभन दिये गए। उनके विश्वासपात के कारण बाद में भीमा नायक को पकड़ लिया गया और उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। आजीवन कारावास की सजा देकर बाद में उन्हें अंडमान जेल भेज दिया गया।
खाज्या नायक:-
- खाज्या नायक अग्रेडों के भील पल्टन के एक सामान्य सिपाही थे। बाद में उन्हें किसी गलती के कारण 10 साल की कैद हुई, जिस कारण से खाया के मन में अंग्रेज शासन के प्रति घृणा के बीज अंकुरित हो गए। जब 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह भड़का तब खान्या नायक यादवानी क्षेत्र के क्रांतिकारी नेता भीमा नायक से मिल गए। यहाँ से इन दोनों की जोड़ी बनी, जिसने भीलों को सेना बनाकर निमाड़ क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूंका।
- अप्रैल 1858 को बड़वानी के पास आमल्यापानी गाँव अंग्रेज सेना और भील सेना की मुठभेड़ हो गई, जिसमें, खाज्या नायक के वीर पुत्र दौलतसिंह व अनेक योद्ध शहीद हो गए।
प्रमुख नेतृत्वकर्ता एवं संबंधित क्षेत्र :-
नेतृत्व |
क्षेत्र |
विशेष |
शेख रमजान |
सागर
|
सागर गजेटियर में दर्ज जानकारी के अनुसार यहाँ 1 जुलाई से क्रांति का आरंभ हुआ। 42वीं पैदल
सेना के वरिष्ठ सूबेदार शेख रमजान ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया।
|
शहादत
खान |
महू
(इंदौर) |
1857 की क्रांति के समय इंदौर में तुकोजीराव
होल्कर (द्वितीय) का शासन था तथा इन्होंने गोपनीय तरीके से आंदोलनकारियों की
सहायता की। 1 जुलाई 1857 को इनके तोपखाने के प्रमुख तोपची सआदत खाँ ने भारतीय
जवानों को संबोधित करते हुए कहा " तैयार हो जाओ आगे बढ़ो और अंग्रेजों को मार
डालो" यह महाराजा का हुक्म है। इंदौर में इन्होंने क्रांति का बीड़ा उठाया
और मुल्क को आजाद करने को जिम्मेदारी ली। अक्तूबर 1874 की सुबह इस महान
क्रांतिकारी को फाँसी दे दी गई।
|
शहजादा फिरोजशाह |
मंदसौर
|
शहादत खान के सेनापति थे |
|
राजा ठाकुर सरजू प्रसाद |
विजयराघवगढ़
(कटनी ) |
1857 के क्रांतिकारी ने जब बहादुर शाह जफर को
अपना सम्राट घोषित किया और दिल्ली पर अधिकार कर लिया तब विजयराघवगढ़ एकमात्र ऐसा
राज्य था जिसने तोपें दागकर क्रांति का अभिनंदन किया था और विदेशी सत्ता को
चुनौती दी थी। *सन् 1865 में सशस्त्र सैनिकों के पहरे पर काले
पानी की सजा के लिये 'रंगून' जाते समय यह वीरात्मा पहरेदार की कटार छीनकर
अपने सीने में भोंककर शहीद हो गए। *उन्होंने कहा था कि 'मैं काला पानी से मौत को अधिक पसंद करता हूँ।
मेरी प्रजा में तुच्छ से तुच्छ व्यक्ति भी जेल में रहना पसंद नहीं। करता फिर मैं
तो उनका राजा हूँ।।
|
राजा बखत्बली |
शाहगढ़(सागर) |
परिस्थितियों वश 1842 के बुन्देला विद्रोह मे
उन्हें अंग्रेजों की मदद करनी पडी। मगर 1857 की क्रांति के दौरान उन्होंने सागर
स्थित ब्रिटिश सत्ता को हिला कर रख दिया।
|
बौधन दौआ |
शाहगढ़(सागर) |
बखतबली के सेनापति थे |
|
तात्या टोपे
|
ग्वालियर,झाँसी |
तात्या
या तांतिया टोपे, जिन्हें मूल रूप से राम चंद्र पांडुरंग
राव के नाम से जाना जाता था, ने
अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ एक साहसिक लड़ाई शुरू की। वह नाना साहेब के
करीबी साथी थे और पेशवा बाजीराव उनसे गहरा स्नेह रखते थे। * उन्होंने कानपुर की रक्षा के लिए लड़ाई में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो उस
समय शुरू की गई थी जब जनरल हैवलॉक की सेना इलाहाबाद से आगे बढ़ रही थी। * कानपुर के विद्रोह के बाद तात्या टोपे ने
मध्य भारत में झाँसी की रानी के साथ मिलकर मोर्चा सँभाला अंतत: सिंधिया के सामंत
मानसिंह ने विश्वासघात करके उन्हें पकड़वा दिया, और अंत
में 18 अप्रैल,1859 को शिवपुरी में इन्हें फाँसी दे दी
गई।
|
भागीरथ सिलावट |
इंदौर |
भागीरथ सिलावट होलकर राजा की पैदल सेना के एक
अधिकारी थे। 1857 ईस्वी की गदर के दौरान विद्रोह का झंडा उठाने और अंततः फांसी
की सजा पाने वाले भागीरथ सिलावट की बहादुरी और देश प्रेम की दास्तान मालवा अंचल
और विशेषकर इंदौर शहर के इतिहास का उज्ज्वल और गौरवशाली अध्याय है। * भागीरथ सिलावट को देपालपुर और मोरवर्दी नामक
पहाड़ी पर अचानक फासी दे दी गई थी।
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मर्दन सिंह |
बानपुर-ललितपुर |
मर्दन सिंह और बखतबली ने 1857 के संग्राम में
झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई की सहायता की| * लक्ष्मीबाई 17 जून, 1857 को वीरगति को प्राप्त हुई। इसके बाद
क्रमशः 5 एवं 6 जुलाई 1858 को मर्दन सिंह एवं बखतवली ने शाहगढ के असिस्टेण्ट
सुपरिटेण्डेन्ट मिस्टर थरेण्टन के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया।
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रानी अवन्ती बाई |
रामगढ
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वर्णन ऊपर विस्तार में दिया गया है |
ठाकुर रणमत सिंह |
मनकहरी,चित्रकूट ,सतना |
विंध्य में ठाकुर रणमत सिंह ने अंग्रेजों के
विरूद्ध आवाज बुलंद की थी। ठाकुर
रणमत सिंह रीवा और पन्ना के बीच का क्षेत्र बुंदेलों से मुक्त कराने में उभरकर
सामने आए। * राजनीतिक एजेंट आसवार्न की गतिविधियों से
क्षुब्ध होकर ठाकुर रणमत ने अंग्रजों के विरूद्ध झंडा उठा लिया। आसवार्न के
बंगले पर हमला हुआ, लेकिन वह चालाकी से बच गया। * इसके बाद ठाकुर रणमत सिंह और उनके साथी लाल
धीर सिंह, लाल पंजाब सिंह, लाल श्यामशाह, लाल
लोचन सिंह व पहलवान सिंह सहित अन्य अंग्रेजों की निगाह में आ गए। जिससे इन सभी
को चित्रकूट के जंगल में शरण लेना पड़ा। जंगल से ही उन्होंने सैन्य संगठन का
कार्य किया। *रीवा महाराज के दीवान दीनबंधु के जरिए
ठाकुर रणमत सिंह के लिए आत्म समर्पण करने का प्रस्ताव भेजा, लेकिन बाद में उस समय उन्हें अंग्रेजी सेना
द्वारा घेर लिया गया, जब वे
मित्र विजय शंकर नागर के घर जालपा देवी मंदिर के तहखाने में विश्राम कर रहे थे।
बाद में अनन्त चतुर्दशी के दिन 1859 में आगरा जेल में उन्हें फांसी दे दी गई।
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हिरदेशाह |
हीरापुर(नरसिंहपुर) |
1842 के बुंदेला विद्रोह एवं 1857 के संग्राम
में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी |
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सदाशिव राव |
महिदपुर(उज्जैन)
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* महिदपुर
के अमीन सदाशिव राव की भूमिका भी इस बारे में उल्लेखनीय है। उन्होंने क्रांति के
लिए बड़ी संख्या में सैनिकों की भर्ती की तथा उन्हें हर प्रकार का सहयोग दिया। * 8
नवम्बर, 1857 को निर्धारित योजनानुसार प्रातः दो
हजार क्रांतिकारियों ने एरा सिंह के नेतृत्व में मारो काटो का उद्घोष करते हुए
महिदपुर छावनी पर आक्रमण कर दिया। *नेतृत्व के आभाव में धीरे-धीरे अंग्रेजों ने
फिर से छावनियों पर अधिकार कर लिया। इस युद्ध में मुख्य भूमिका निभाने वाले अमीन
सदाशिव राव भी बंदी बना लिए गए। अंग्रेजों ने 7 जनवरी, 1858 को तोप के सामने खड़ाकर गोला दाग दिया।
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शहीद किशोर सिंह |
हिन्डोरिया रियासत
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बुंदेलखंड क्षेत्र में क्रांति में भाग लिया और
वीरगति को प्राप्त हुए |
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टंट्या भील |
निमाड़ क्षेत्र |
*भारतीय आदिवासियों का रॉबिनहुड कहा जाता है | *इनकी समाधी स्थान पातालपानी में स्थित है | |
रानी लक्ष्मी बाई |
झाँसी,ग्वालियर |
ऊपर विस्तार पूर्वक वर्णन दिया गया है |
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दिमान देशपत बुंदेला |
छतरपुर |
ये महाराजा छत्रसाल के वंशज थे। दिमान देसपत ने
1857-58 में अंग्रेजी फौज को कड़ी चुनैतियाँ दीं, उन्होंने
तात्या टोपे को मदद के लिए एक हजार बंदूकची भी भेजे थे। देसपत ने अपने बल से
शाहगढ़ रियासत के फतेहपुर के इलाके पर भी कब्जा कर लिया था। देसपत की शक्ति इतनी
बढ़ी हुई थी कि ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पकड़ने के लिए 5000 रु. का इनाम घोषित
कर रखा था। लंबे संघर्ष के बाद सन् 1862 में नौगाँव के कुछ मील दूर पर वीर देसपत
बुंदेला मारे गए।
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लाल पद्मधर सिंह बघेल
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रीवा |
“रीवा के शेर” नाम से जाने जाते है | |
फाजिल एवं आदिल मोहम्मद
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भोपाल |
ऊपर वर्णन दिया गया है |
महादेव शास्त्री |
ग्वालियर |
ग्वालियर के महादेव शास्त्री एक प्रखर
राष्ट्रभक्त थे, जिन्होंने शस्व तो नहीं उठाए लेकिन नाना
साहब पेशवा को दिए गए सहयोग के कारण उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया। महादेव
शास्त्री ने ग्वालियर में तात्या टोपे के पक्ष में वातावरण तैयार किया। नाना
साहब पेशवा का पत्रवाहक बनकर क्रांति की जानकारी अन्य सेनानियों तक पहुंचाई।।
अंग्रेज सरकार ने महादेव शास्त्री की गतिविधियों को देखते हुए उन्हें गिरफ्तार
कर फाँसी दे दी। अमीरचन्द वाडिया को भी फाँसी दी गई।
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राज्य बख्तावर सिंह |
अमझेरा(धार) |
अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी
प्रज्जवलित होने में अमझेरा (धार से लगभग 30 कि.मी.) के राजा बख्तावर सिंह मालवा
के पहले शासक थे, जिसने कम्पनी के शासन का अंत करने का
बीड़ा उठाया था, अंग्रेजों की सेना को राजा ने कड़ी
टक्कर दी, किन्तु अपने ही सहयोगियों द्वारा
विश्वासघात के कारण बख्तावर सिंह गिरफ्तार किए गए। अंग्रेजों ने उन्हें इन्दौर
में फाँसी पर चढ़ा दिया।
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