पिछले पोस्ट मे हमने 1857 के पूर्व और 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन मे मध्यप्रदेश के योगदान-भाग -1 (History of Madhya Pradesh in Hindi - before 1857) को समझा | इस आर्टिकल के माध्यम से हम 1857 के बाद स्वतंत्रता आंदोलन मे मध्यप्रदेश के योगदान (History of Madhya Pradesh in Hindi - After 1857) को समझेंगे | स्वतंत्रता आंदोलन में मध्यप्रदेश का योगदान: MPPSC परीक्षा के GS-1 के भाग-अ (History of Madhya Pradesh) – इकाई-4 का एक महत्वपूर्ण topic है | यह Topic मध्यप्रदेश के इतिहास (History of Madhya Pradesh in Hindi) से संबंधित है| मध्यप्रदेश की अन्य सभी परीक्षा मे यह महत्वपूर्ण है |
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History of Madhya Pradesh-After 1857/स्वतंत्रता आंदोलन में मध्यप्रदेश का योगदान
यह क्रांति
न केवल ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ थी, बल्कि इसमें विभिन्न समाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक कारण भी थे। इसने
भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को एक साथ आने का अवसर प्रदान किया और उन्होंने
एक सामान्य लक्ष्य के लिए संगठित होकर संघर्ष किया।
1857 के
पश्चात् की क्रांति ने मध्य प्रदेश के क्षेत्र में भी एक नयी उम्मीद का बोझ उठाया
और यहाँ के योद्धाओं ने अपनी निरंतर संघर्ष और साहस के साथ स्वतंत्रता की प्राप्ति
के लिए प्रयासरत रूप से काम किया। और हम मध्यप्रदेश में हुए इन्हीं प्रयासों को
निम्न चरणों में बांटकर समझने की कोशिश करेंगें जिसने भारत को आजाद करने में अपनी
महती भूमिका निभाई

इन
प्रारम्भिक चरणों के पश्चात यह असहयोग, खिलाफत,झण्डा
सत्याग्रह, जंगल सत्याग्रह,त्रिपुरी अधिवेशन आदि से होते हुए भारत की आजादी तक निम्न चरणों में संचालित होते रहे
-
प्रमुख गांधीवादी आंदोलन:-
आजादी के आंदोलन के महानायक महात्मा गांधी की अविभाजित मध्यप्रदेश से जुड़ी कई स्मृतियां हैं। साल 1918 से 1942 तक बापू के मध्यप्रदेश (तत्कालीन मध्य भारत) में नौ दौरे हुए। अहमदाबाद का साबरमती आश्रम छोड़ने के बादमहात्मा गांधी ने पुराने मध्यप्रदेश की राजधानी नागपुर के नजदीक वर्धा में अपना आश्रम बनाया था। गांधी जी का यह नया ठिकाना स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लिए देश की अघोषित राजधानी बना था।
मध्यप्रदेश में गांधी जी की यात्राएं
- पहली यात्रा - सन 1918 इंदौर
- दूसरी यात्रा - सन 1921 छिंदवाड़ा
- तीसरी यात्रा - सन 1921 सिवनी-जबलपुर
- चौथी यात्रा - सन 1921 खंडवा
- पांचवीं यात्रा - सन 1921 भोपाल
- छठवीं यात्रा - सन 1933 (बालाघाट, सिवनी, छिंदवाड़ा, बैतूल, सागर, दमोह, कटनी, जबलपुर, मण्डला, बाबई, हरदा, खंडवा।)
- सातवीं यात्रा - सन 1935 इंदौर
- आठवीं यात्रा - सन 1941 भेड़ाघाट (जबलपुर)
- नौवीं यात्रा - सन 1942 जबलपुर
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मप्र. में खिलाफत आंदोलन(1919-1920)
- कारण :- तुर्की के खलीफा पद को बचाने
के लिए |
- नेतृत्वकर्ता :- भारत में अली बन्धु तथा मप्र. में
अब्दुल जब्बार खां ने खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व किया।
- विशेष घटना :- इस दौरान अमजल खां एक
आंदोलन कार्यकर्ता जिन्होंने जबलपुर नगरपालिका भवन पर झंडा फहराया।
मप्र. में असहयोग आंदोलन(1920)
- कारण :-खिलाफत की समस्या,रौलट एक्ट,जलियाँवाला बाग आदि |
- प्रमुख नेतृत्वकर्ता :-म.प्र. में
असहयोग आंदोलन का नेतृत्व प्रभाकर डुंडीराज ने किया,एवं इसी दौरान 20 मार्च 1921 को
महात्मा गाँधी ने जबलपुर का दौरा किया।
- अन्य नेता :-माखनलाल चतुर्वेदी,द्वारका प्रसाद मिश्र ,सुभद्रा कुमारी चौहान आदि |
आंदोलन के
दौरान प्रमुख घटित कार्यक्रम :-
- 1922 में सीहोर व झाबुआ में भी विदेशी
वस्तुओं का बहिष्कार हुआ।
- 1921 में उमर खां व मास्टर लाल चंद्र
सिंह ने प्रिंस ऑफ वेल्स के रतलाम आने पर विद्रोह किया जिसके कारण उन्हें
गिरफ्तार कर लिया गया व 3 वर्ष की सजा सुनाई गयी ।
- महाकौशल (जबलपुर) से इसका नेतृत्व
महाकौशल के केसरी सेठ गोविंद दास,द्वारका प्रसाद मिश्र,माखनलाल चतुर्वेदी और सुभद्रा कुमारी
चौहान ने किया |
- जब गांधीजी ने असहयोग आंदोलन समाप्त
कर लोगों को रचनात्मक कार्य करने के लिये प्रेरित किया, तब 11 जून, 1923
ई. को मास्टर बलदेव प्रसाद ने मध्यप्रदेश का पहला दैनिक समाचार पत्र ’प्रकाश’ आरंभ किया।(आजादी का अमृत महोत्सव से लिया गया)
- असहयोग आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार ने शांतिपूर्ण जुलूसों और प्रदर्शनों पर लाठी चार्ज किया व अनेक स्थानों पर पुलिस ने गोलियाँ भी चलाई इस आंदोलन में जबलपुर में प्रदर्शन करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी, पं. सुंदरलाल तपस्वी, लक्ष्मीचंद्र जैन और भगवान दीन आदि ने गिरफ्तारियाँ दीं।
- इस आंदोलन के दौरान सरकार ने राष्ट्रवादी विचारों के
प्रसार को रोकने के लिये आर्डिनेंस लाकर जबलपुर से प्रकाशित होने वाले
कर्मवीर लोकमत कौशल, युगांतर
आदि समाचार पत्रों का प्रकाशन बंद करा दिया था।
- असहयोग आन्दोलन में मध्यप्रदेश की
जनता ने शराब बन्दी, तिलक
स्वराज्य फण्ड, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, सरकारी शिक्षण संस्थाओं का त्याग कर राष्ट्रीय शिक्षा
संस्थाओं की स्थापना, हथकरघा
उद्योग की स्थापना जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में अपना योगदान दिया।
मप्र. में सविनय अवज्ञा आंदोलन:-
- कारण :-साइमन कमीशन के विरोध स्वरूप
तथा डोमेनियन राज्य के स्थान पर पूर्ण स्वराज का दर्जा दिलाने हेतु महात्मा
गांधी द्वारा प्रारंभ आंदोलन जिसका विस्तार मध्यप्रदेश में भी हुआ
- प्रमुख नेता :-सेठ गोविंददास,
पं. रविशंकर शुक्ल, पं. द्वारका प्रसाद मिश्र, श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान, पं. माखनलाल चतुर्वेदी
घटनाक्रम :-
- 6 अप्रैल, 1930 अर्थात् जिस दिन गांधी जी ने नमक कानून तोड़ा उस दिन
जबलपुर से सेठ गोविंददास तथा पं. द्वारका प्रसाद मिश्र के के नेतृत्व में 23
कि.मी. दूरी पर स्थित वीरांगना महारानी दुर्गावती की समाधि बरेला पर शपथ लेने
को विशाल जुलूस ले जाया गया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान 8
अप्रैल, 1930 को जबलपुर में एक विराट सभा का
आयोजन हुआ जिसमें पं. रवि शंकर शुक्ल ने भी भाग लिया, 29 अप्रैल को जबलपुर में सेठ गोविंद दास, पं. रविशंकर शुक्ल, पं.
द्वारका प्रसाद मिश्र, श्रीमती
सुभद्रा कुमारी चौहान, पं.
माखनलाल चतुर्वेदी,विष्णुदयाल
भागवा, टी कृष्ण स्वामी आदि ने अपनी
गिरफ्तारियाँ दीं।
- चूंकि मध्य प्रांत के राज्यों की सीमा
समुद्र तट से नहीं लगती थी जिस कारण वंहा नमक कानूनों को तोड़ना औचित्यपूर्ण
नहीं था,इसलिए इन राज्यों में वन कानूनों को
तोड़ने का निश्चय किया गया जिसे जंगल सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है जिसे
हम आगे सविस्तार रूप में समझेंगे |
मप्र. में भारत छोड़ो आंदोलन :-
अगस्त 1942
में देश के राजनीतिक रंगमंच पर 'भारत छोड़ो' नामक ऐतिहासिक आन्दोलन की शुरुआत हुई। 8 अगस्त को भारत छोड़ो
प्रस्ताव बम्बई में होने वाली अखिल भारतीय काँग्रेस समिति ने पारित किया। 9 अगस्त
को गांधीजी सहित सारे बड़े नेता बन्दी बनाये जा चुके थे। ऐसी स्थिति में पंडित
रविशंकर शुक्ल, द्वारकाप्रसाद मिश्र सहित
मध्यप्रदेश के सभी बड़े नेता दमन के नग्न तांडव का सामना करने के लिए अपने प्रदेश
वापस लौट आये प्रत्येक नगर, तहसील और ग्राम में जनता ने अपने-आपको संगठित किया और संघर्ष का
सूत्रपात किया।
विदिशा :-
- नेतृत्व :- राम सहाय जी
- मध्यप्रदेश में इस आंदोलन की शुरुआत विदिशा जिले से हुई थी। इस दौरान विदिशा में भी नागरिकों ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर बगावत का बिगुल फूंका था। आसपास के जिलों के लोग भी इस आंदोलन में शामिल हुए थे। इसका नेतृत्व राम सहाय जी ने किया था।
जबलपुर :-
- 9 अगस्त, 1942 को कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में जबलपुर की तिलक भूमि तलैया में सभा रखी गई जिसमें एक सप्ताह तक हड़ताल रखने का फैसला लिया गया।
- 11 अगस्त को फुहारे पर सत्याग्रहियों पर पुलिस ने लाठियाँ बरसाई. इससे आंदोलन उग्र हो गया। 14 अगस्त को फुहारे से निकलने वाले जुलूस पर पुलिस ने गोली चलाई युवक गुलाब सिंह इस हादसे में शहीद हुआ।
बैतूल :-
- 12 अगस्त को बैतूल जिले के प्रभात पट्टन में बाजार लगा हुआ था, जिसमें आसपास के गाँवों के लोग बड़ी संख्या में इकट्ठे हुए थे, पुलिस वाले भी थे।
- भारत छोड़ो आन्दोलन की उमंग में लोगों ने तय कर लिया कि पुलिस वालों की वर्दी उतार कर उन्हें खादी के कपड़े पहनने के लिए विवश कर दिया इसी बीच मुलताई से पुलिस के और जवान आ पहुँचे, जिन्होंने जुलूस पर गोली चला दी, जिसमें महादेव तेली स्वतंत्रता की वेदी पर बलिदान हो गया।
रीवा राज्य
:-
- रीवा राज्य के अन्तर्गत सतना जिले के कृपालपुर ग्राम में विद्यार्थी यूनियन के तत्वावधान में निकले जुलूस पर जब पुलिस ने गोलियाँ बरसाई तब लाल पद्मधर सिंह राष्ट्रीय झण्डा हाथ में लिए सीना तान कर खड़े हो गए। गोली से वे वीरगति को प्राप्त हुए।
- लाल पद्मधर सिंह को रीवा सतना का शेर कहा जाता है
मण्डला :-
- प्रमुख नेता :- उदयचंद जैन, मन्नूलाल मोदी और मथुराप्रसाद यादव |
घटनाक्रम :-
- 15 अगस्त, 1942 को मण्डला में एक बड़ा जुलूस निकाला गया जी जिलाधीश कार्यालय जाने वाला था, लेकिन हथियारबंद पुलिस ने जुलूस को रोक दिया और तब उसी स्थान पर सभा होने लगी, जिसे मन्नूलाल मोदी और मथुराप्रसाद यादव ने सम्बोधित किया।
- इसके बाद मैट्रिक के छात्र उदयचंद जैन ने सभा की बागडोर संभाली पुलिस ने सभा को तितर-बितर करने के लिए बर्बर लाठी प्रहार किया और हवा में गोलियाँ चलाई जब पुलिस को वर्वरता पर ऐतराज किया गया तो मजिस्ट्रेट ने गोली चलवा दी और वीर बालक उदयचंद शहीद(20 वर्ष) हो गए।
बैतूल :-
- नेतृत्व :- विष्णु गोंड
- शाहपुर क्षेत्र के आदिवासी सेनानियों का एक बड़ा समूह 19 अगस्त,1942 को विष्णु गोंड के नेतृत्व में घोड़ाडोंगरी रेल्वे स्टेशन के पास इकट्ठा हुआ।
- गोंड सरदार विष्णु ने जंगल-जंगल घूम कर इन आदिवासियों को प्रेरित और एकजुट किया था इस आदिवासी समूह ने रेल की पटरियों उखाड़ी,पुलिस थाने और घोड़ाडोंगरी रेल्वे स्टेशन के पीछे स्थित लकड़ी के विशाल डिपो को आग के हवाले कर दिया।
- पुलिस और वन अधिकारी घटनास्थल पर आए पुलिस ने बिना चेतावनी दिए गोलियों की बौछार कर दो। वीरसा गोड घटनास्थल परही शहीद हो गया और जिरों गोंड की मृत्यु बाद में कारावास में हुई। अंग्रेजी हुकूमत ने यहाँ आदिवासियों पर काफी जुल्म किए।
नरसिंहपुर :-
- 8 अगस्त, 1942 को बापू द्वारा दिया गया 'करो या मरो' का संदेश समूचे भारतवर्ष को उद्वेलित कर रहा था, गाडरवारा के समीप ग्राम चीचली में 21 अगस्त को एक सभा हुई जिसमें अंग्रेजों के खिलाफ जोशीले भाषण दिए गए। पुलिस ने नर्मदा प्रसाद और बाबूलाल को गिरफ्तार कर लिया। इससे जनता उत्तेजित हो गई।
- 23 अगस्त को जब भारी भीड़ चीचली ग्राम में इकट्ठी थी, पुलिस ने बेरहमी से गोलीबारी की जिसमें मंशाराम और गौराबाई शहीद हो गए। नरसिंहपुर जिले के मानेगाँव के ठाकुर रुद्रप्रताप सिंह जिन्हें व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान 1940 में गिरफ्तार किया गया था, जेल में ही वे शहीद हो गये।
इन्दौर :-
- 1942 में इन्दौर के सर्राफा में सत्याग्रह के दौरान पुलिस ने पहले तो लाठी चार्ज किया और जब स्वतंत्रता के अभिलाषियों का मनोबल नहीं तोड़ा जा सका तब गोलियों की बौछार कर दी इन्दौर रियासत में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय पुलिस का रुख दमनकारी रहा।
- लाठीचार्ज और गोली चालन के बावजूद इन्दौर में सभाएँ हुयी और जुलूस निकले। प्रजामण्डल ने भारत छोड़ो आन्दोलन को समर्थन दिया। रतलाम, धार, बदनावर, धामनोद, झाबुआ आदि स्थानों पर उग्र प्रदर्शन हुए।
ग्वालियर
रियासत :-
- ग्वालियर रियासत में 'सार्वजनिक सभा' ने भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रस्ताव का समर्थन कर, विदिशा सम्मेलन में उत्तरदायी शासन की माँग की अनेक नेता बन्दी बनाए गए।
भोपाल
रियासत:-
- भोपाल रियासत में भारत छोड़ो का प्रस्ताव पारित कर बांटा गया। इस कारण शाकिर अली खाँ तथा अन्य नेताओं को बन्दी बनाया गया सीहोर, रायसेन आदि स्थानों पर आन्दोलन हुये।
रीवा
विन्ध्यक्षेत्र :-
- रीवा विन्ध्यक्षेत्र में प्रजामण्डल के आव्हान पर चांवल आन्दोलन में अनेक लोगों ने भाग लिया और गिरफ्तारियाँ दीं।
संक्षेप में मध्यप्रदेश का ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं था, जहाँ आन्दोलन न हुआ हो। सरकार ने भी आन्दोलन का दमन सभी उपलब्ध साधनों तथा शक्ति से किया। सरकार का दमन चक्र जब तेज हुआ, भूमिगत आन्दोलन आरम्भ हुआ। सरकार चाहती थी कि आन्दोलन के दौरान हुई हिंसा की गांधीजी निन्दा करें परन्तु गांधीजी ने जनता के उग्र प्रदर्शनों के लिए सरकार की उत्तेजक कार्यवाहियों को दोषी बताया। इसकी प्रतिक्रियास्वरूप मध्यप्रदेश में हड़तालों, सभाओं और प्रदर्शन के माध्यम से अपना विरोध दर्ज किया गया।
मध्यप्रदेश में संचालित हुए सत्याग्रह :-

झण्डा सत्याग्रह :-
- कारण :- डिप्टी कमिश्नर किस्मेट लेलैंड ब्रुअर हेमिल्टन द्वारा टाउन हॉल पर झण्डा फहराने की अनुमति ना देना जिसके विरोधस्वरूप जबलपुर में टाउन हॉल में झण्डा फहराया गया
- नेतृत्वकर्ता :- पं. सुंदरलाल, पं.बालमुकुंद त्रिपाठी, बद्रीनाथ दुबे जी, श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान, तथा माखन लाल चतुर्वेदी जी, उस्ताद प्रेमचंद, सीताराम जादव, परमानन्द जैन और खुशालचंद्र जैन |
सम्पूर्ण घटनाक्रम :-
- इतिहासकार डॉ. आंनद सिंह राणा के मुताबिक झंडा सत्याग्रह की पृष्ठभूमि और इतिहास का आरंभ अक्टूबर 1922 से ही हो गया था।
- जब असहयोग आंदोलन की सफलता और प्रतिवेदन के लिए कांग्रेस ने एक जांच समिति बनाई और वह जबलपुर पहुंची तब समिति के सदस्यों को विक्टोरिया टाऊन हाल में अभिनंदन पत्र भेंट किया गया और तिरंगा झंडा (उन दिनों चक्र की जगह चरखा होता था) भी फहरा दिया गया।
- समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरें इंग्लैंड की संसद तक पहुंच गईं, हंगामा हुआ और भारतीय मामलों के सचिव विंटरटन ने आश्वस्त किया कि अब भारत में किसी भी शासकीय या अर्धशासकीय इमारत पर तिरंगा नहीं फहराया जाएगा। इसी पृष्ठभूमि ने झंडा सत्याग्रह को जन्म दिया।
- जबलपुर के स्वतंत्रता सेनानियों को जब इसका पता लगा तो उन्होंने ब्रिटिश हूकूमत के इस फैसले को चुनौती की तरह लिया |
- एक बार फिर कांग्रेस द्वारा मार्च 1923 में गठित कमेटी ( सदस्य - डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, देवदास गांधी और जमनालाल बजाज) जबलपुर पँहुचे |
- सभी को मानपत्र देने हेतु म्युनिसिपल कमेटी प्रस्ताव पारित कर डिप्टी कमिश्नर किस्मेट लेलैंड ब्रुअर हेमिल्टन को पत्र लिखकर तत्कालीन नगर के कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष ने टाऊन हाल पर झंडा फहराने की अनुमति मांगी।
- लेकिन हेमिल्टन ने साथ में यूनियन जैक भी फहराने की शर्त रखी,जिसे किसी ने स्वीकार नहीं किया
- तत्पश्चात नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पं.सुंदरलाल ने जनता को आंदोलित किया कि टाऊन हाल में तिरंगा अवश्य फहराया जाएगा।
- 18 मार्च को पं. सुंदरलाल, पं.बालमुकुंद त्रिपाठी, बद्रीनाथ दुबे जी, श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान, तथा माखन लाल चतुर्वेदी जी के साथ लगभग 350 सत्याग्रही टाऊन हाल पहुंचे और उस्ताद प्रेमचंद ने अपने 3 साथियों सीताराम जादव, परमानन्द जैन और खुशालचंद्र जैन ने मिलकर टाऊन हाल पर तिरंगा झंडा फहराया दिया।
- कैप्टन बंबावाले ने लाठीचार्ज करा दिया जिसमें श्रीयुत सीताराम जादव के दांत तक टूट गए थे, सभी को गिरफ्तार किया और तिरंगा को पैरों तले कुचल कर जप्त कर लिया।
- अगले दिन पं.सुंदरलाल जी को छोड़कर सभी मुक्त कर दिए गए |
- पं.सुंदरलाल जी 6 माह का कारावास हुआ उसके बाद से इन्हें तपस्वी सुंदरलाल जी के नाम से जाना जाने लगा।
- इस सफलता के उपरांत उत्साहित होकर नागपुर से व्यापक स्तर पर झंडा सत्याग्रह का आरंभ एवं प्रसार लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व हुआ।
- श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान भारत की पहली महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं, जिन्होंने झंडा सत्याग्रह में अपनी गिरफ्तारी दी।
- 18 जून को झंडा सत्याग्रह का देशव्यापीकरण हुआ और झंडा दिवस मनाया गया।
झंडा सत्याग्रह व्यापक स्तर पर फैल गया और आखिरकार 17 अगस्त 1923 को अपना लक्ष्य प्राप्त करने के उपरांत झंडा सत्याग्रह वापस ले लिया गया। इस समझौते के अंतर्गत नागपुर के सत्याग्रही मुक्त कर दिए गए परंतु जबलपुर के सत्याग्रही अपनी पूरी सजा काटकर ही लौटे।
जंगल सत्याग्रह :-
कारण :-
मध्य भाग
में स्थित राज्यों जिनकी सीमा समुद्र से नहीं लगती थी उनके द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन
में भाग लेने हेतु नामक कानून के स्थान पर वन कानूनों को तोड़ने का निर्णय लिया
जिसमे आदिवासी जंगल कानून तोड़ने के लिए जंगलों में जाकर पेड़ काटा करते थे और विरोध
स्वरुप वहीं बैठ जाते थे |
नेतृत्व :-
1930 में
जंगल सत्याग्रह की शुरुआत जबलपुर से हुई जिसका नेतृत्व माखन लाल चतुर्वेदी व
द्वारका प्रसाद मिश्र ने किया इस दौरान इन पर राजद्रोह का आरोप लगे गया | इनकी
गिरफ़्तारी के पश्चात बापू जी आने (एम. एस.आणे) ने इसका नेतृत्व किया तथा इसके बाद
मध्यप्रदेश में जंगल सत्याग्रह नें व्यापक विस्तार किया और ब्रिटिश शासन को भी भयभीत
कर दिया था जिसमें प्रमुख क्षेत्र थे –
टुरिया जंगल सत्याग्रह:-
- उद्देश्य:-वन कानूनों का विरोध करना
- नेतृत्वकर्ता:- 1930 में जब गांधीजी ने दांडी मार्च कर नमक सत्याग्रह किया था, तब सिवनी के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने “दुर्गाशंकर मेहता’’ के नेतृत्व में जंगल सत्याग्रह चलाया।
- घटना: - सरकारी जंगल के चंदन के बगीचों में घास काटकर यह सत्याग्रह किया जा रहा था। तथा सत्याग्रही घास काटकर सत्याग्रह करने लगे। सिवनी के डिप्टी कमिश्नर के हुक्म पर पुलिस ने गोली चला दी। घटनास्थल पर ही तीन महिलाएँ- गुड्डों दाई, रैना बाई, बेमा बाई और एक पुरुष विरजू गोंड शहीद हो गए, चारों शहीद आदिवासी थे।
घोडा डोंगरी जंगल सत्याग्रह :-
क्षेत्र
:-बैतूल
नेतृत्वकर्ता:- 1930 के जंगल सत्याग्रह के समय बैतूल के आदिवासी समुदाय ने विद्रोह
किया बंजारीढाल का “गंजन सिंह कोरकू” विद्रोही
आदिवासियों का नेता था |
ओरछा जंगल
सत्याग्रह :-
नेतृवकर्ता
:-लालाराम वाजपेयी
घुनघुटी जंगल सत्याग्रह :- उमरिया में
मंडला में इसका नेतृत्व गिरिजा शंकर अग्निहोत्री ने किया अन्य स्थान जैसे छिन्दवाडा,कटनी का मुड़वारा आदि मे भी जंगल सत्याग्रह संचालित हुआ
नमक सत्याग्रह :-
क्षेत्र:-
जबलपुर
नेतृत्वकर्ता
:- सेठ गोविंद दास व द्वारका प्रसाद मिश्र
मध्यप्रदेश ओर काँग्रेस:-
काँग्रेस अधिवेशन |
वर्ष |
विशेष |
नागपुर अधिवेशन |
1891 |
*अध्यक्षता –पी. आनंद चारलू *मध्य प्रांत और आसपास के भागों में राजनीतिक चेतन का जागरण हुआ *इस अधिवेशन में मध्य प्रांत व मालवा में शिवाजी एवं गणेश उत्सव
मनाने की अनुमति मिली |
लाहौर अधिवेशन |
1893 |
* अध्यक्षता-दादा भाई नौरोजी *मप्र. से हरि सिंह गौर ने भाग लिया *इनके द्वारा ही कलकत्ता अधिवेशन (1901) में न्याय विभाग ओर शासन
विभाग को प्रथक करने की मांग रखी थी | |
त्रिपुरी अधिवेशन |
1939 |
अध्यक्षता-सुभाष चंद्र बोस मध्यप्रदेश में आयोजित एकमात्र अधिवेशन सुभाष चंद्र बोस ने 203 मतों से पट्टाभि सीतारमैया को पराजित किया
ओर काँग्रेस के अध्यक्ष चुने गए किन्तु बोस ने बाद में अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया ओर राजेन्द्र
प्रसाद अध्यक्ष बने |
अन्य प्रमुख क्रांतिकारी एवं जन आंदोलन :-
कसाई खाना आंदोलन – 1920
- कारण –ब्रिटिश कंपनी ‘सेंट्रल एंड ट्रेडिंग सागर ‘ के रातौना नामक स्थान पर कसाई खाना स्थापित करना चाहती थी तब गौ वध के विरोध में यह आंदोलन प्रारंभ हुआ |
- नेतृत्व –माखनलाल चतुर्वेदी ने कर्मवीर समाचार पत्र में इसे प्रकाशित कर प्रारंभ किया
चरणपादुका कांड – 14 जनवरी 1931
- कारण –छतरपुर शहर के चरण पादुका नामक स्थान पर ,रियासत शासन के विरोध में एक बड़ी सभा आयोजित की गई थी |
- 14 जनवरी, 1931 को मकर संक्रांति के दिन छतरपुर रियासत में उर्मिल नदी के किनारे चरण पादुका में स्वतंत्रता सेनानियों की एक विशाल सभा चल रही थी। काफी संख्या में लोग इकट्ठे हुए थे
- नौगांव स्थित अंग्रेज पोलिटिकल एजेंट फिशर के हुक्म पर बिना किसी चेतावनी के भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चला दी गई, जिसमें अनेक लोग मारे गए।
- मध्यप्रदेश का जालियाँवाला बाग कहे जाने वाले इस लोमहर्षक कांड में अंग्रेज सरकार ने छः स्वतंत्रता सेनानी सेठ सुन्दरलाल, धरमदास खिरवा, चिरकू, हलके कुर्मी, रामलाल कुर्मी और रघुराज सिंह का पुलिस गोली से शहीद होना स्वीकारा।
पंजाब मेल हत्याकांड :- 23-24 जुलाई 1931(खंडवा)
क्रांतिकारी
– वीर यशवंत
सिंह ,देवनारायण
तिवारी,दलपत राव |
घटना –
- वीर यशवंत सिंह (दमोह), देवनारायण तिवारी और दलपत राव ने खण्डवा रेलवे स्टेशन से हथियार ले जा रही पंजाब मेल ट्रेन पर हमला कर हैक्सल की हत्या कर दी थी, जिसके उपरान्त 10 अगस्त, 1931 को खण्डवा अदालत में मुकदमा प्रस्तुत किया गया |
- 11 दिसम्बर, 1931 को यशवंत सिंह एवं देवनारायण तिवारी को फाँसी की सजा तथा दलपत राव को काला पानी की सजा दी गई।
सोहवाल नरसंहार :-जुलाई 1938 (सतना)
प्रमुख नेता
–पगार खुर्द
निवासी लाल बुध प्रताप सिंह
घटना -
- सतना जिले में बिरसिंहपुर के समीप हिनौता गाँव में 10 जुलाई, 1938 को सोहावल रियासत में ब्रिटिश शासन के विरोध में पगार खुर्द निवासी लाल बुद्ध प्रताप सिंह के नेतृत्व में एक आम सभा आयोजित की जा रही थी।
- इस सभा में सम्मिलित होने जा रहे लाल बुद्धप्रताप सिंह, रामाश्रय गौतम और मंधीर पांडे की माजन गाँव के समीप ब्रिटिश सैनिकों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड को माजन गोलीकांड के नाम से भी जाना जाता है।
चावल आंदोलन :- 28 फरवरी 1947 (रीवा)
घटना-
- 28 फरवरी, 1947 को रीवा राज्य में जबरिया लेव्ही वसूली के विरोध में त्रिभुवन तिवारी (भदवारग्राम) तथा भैरव प्रसाद उरमालिया (शिवराजपुर) को रीवा राज्य के सैनिकों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस काण्ड को रीवा के चावल आन्दोलन को संज्ञा प्रदान की गई।
भोपाल का जलियाँवाला कांड :- 14 जनवरी 1949 (बोरास गाँव)
कारण –
- मकर संक्रांति के दिन रायसेन(बोरास गाँव) में नर्मदा नदी के तट पर तिरंगा फहराने के कारण भोपाल रियासत की नवाबी सेना ओर स्थानीय लोगों मे संघर्ष हुआ
घटना -
- इस संघर्ष में नवाब की सेना ने बैजनाथ गुप्ता, छोटे लाल, वीरधन सिंह, मंगल सिंह और विशाल सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गयी। इस काण्ड को भोपाल का जालियाँवाला काण्ड या बोरास गाँव कांड कहा जाता है।
सर्राफा सत्याग्रह :-1942,इंदौर
- भारत छोड़ो आंदोलन के घटित होने वाली घटना जिसमे मगन लाल ओसवाल को गोली लग जाती है इसका सम्पूर्ण वर्णन ऊपर भारत छोड़ो आंदोलन मे किया गया है|
प्रमुख सभा /समिति /मण्डल :-
स्त्री सेवा दल –
- रतलाम जिले में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रणेता स्वामी ज्ञानानंद थे, जिनकी प्रेरणा से वर्ष 1920 में रतलाम कांग्रेस समिति की स्थापना हुई जिसके तहत वर्ष 1931 को रतलाम में महिला सेवादल की स्थापना की गई।
- उद्देश्य –स्वतंत्रता की मांग के साथ-साथ समाज सेवा करना था
प्रजामण्डल:-
- उद्देश्य –शराब बंदी,हरिजन उद्धार,विदेशी वस्तु का बहिष्कार आदि कार्य करना एवं जनता की जागरूक बनाना
- झाबुआ में 1934 तथा भोपाल में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में स्थापित अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् से प्रेरित होकर वर्ष 1938 में भोपाल राज्य प्रजामंडल की स्थापना हुई।
अंजुमन खुद्दाम-ए-वतन -
- समाजसेवा के उद्देश्य से मौलाना तरज़ी खां व शाकिल अली खां ने भोपाल में अंजुमन खुद्दाम ए वतन की स्थापना 1934 मे की।
प्रजा परिषद :-
- वर्ष 1935 में रतलाम में प्रजा परिषद का गठन किया गया।
- प्रजा परिषद् ने किसानों एवं मजदूरों को संगठित करने का प्रयास किया।
भोपाल राज्य हिन्दू सभा :-
- उद्देश्य – समाजसेवा
- वर्ष 1937 में मास्टर लाल सिंह ने पं. चतुर नारायण मालवीय, डॉ. जमुना मुबरैय्या, लक्ष्मी नारायण सिंहल तथा पंडित उद्धवदास मेहता आदि के सहयोग से भोपाल राज्य हिन्दू सभा का गठन किया गया।
- वर्ष 1937 में भोपाल राज्य हिन्दू सभा के अधिवेशन में मास्टर लाल सिंह, पं. उद्धव दास मेहता और डॉ. जमुना प्रसाद मुखरैया को गिरफ्तार किया गया।
मध्यप्रदेश के प्रमुख क्रांतिकारी :-
चंद्रशेखर आजाद :
परिचय-
अमर शहीद
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाभरा ग्राम में हुआ। वे
14 वर्ष की अवस्था में असहयोग आंदोलन से जुड़े गिरफ्तार होने पर अदालत में
उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का 1 नाम 'स्वतंत्रता' और घर का पता 'जेलखाना' बताया तभी से चन्द्रशेखर के नाम के साथ 'आजाद' जुड़ गया।
आजाद और
ब्रिटिश-
- ब्रिटिश सरकार के लिए आतंक का दूसरा नाम था चन्द्रशेखर आजाद। सम्पूर्ण उत्तर भारत में सशक्त क्रांति की ज्वाला धधकाने तथा क्रांतिकारियों की एक पीढ़ी तैयार करने का श्रेय चन्द्रशेखर आजाद को जाता है।
- 1926 से 1931 तक लगभग हर अंग्रेज विद्रोही गतिविधियों में वे शामिल थे और वे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी के जनरल ऑफीसर इन कमाण्ड बने रहे।
- झाँसी और ओरछा के बीच ग्राम कीमरपुरा के नजदीक सातार नदी के किनारे चन्द्रशेखर आजाद ने अपना डेरा जमाया। वे पं. हरिशंकर ब्रह्मचारी के नाम से चन्द्रशेखर आजाद कौमरपुरा ग्राम के लोगों को दिन में रामकथा सुनाते, भोजन का इंतजाम करते, वहाँ से झाँसी की क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन करते रहे।
- उत्तर भारत की पुलिस आजाद के पीछे पड़ी हुई थी दल के कुछ साथी विश्वासघात कर चुके थे, जिससे वे चिन्तित और क्षुब्ध थे।
- आजाद बचते छिपते इलाहाबाद जा पहुँचे 27 फरवरी, 1931 को वे अल्फ्रेड पार्क में बैठे हुए थे। दिन के दस बज रहे थे कि पुलिस ने उन्हें घेर लिया, दोनों ओर से गोलियाँ चलने लगी आजाद ने पुलिस के छके छुड़ा दिए और जब उनकी पिस्तौल में एक गोली बची थी तब उसे अपनी कनपटी पर दागकर शहीद हो गए।
प्रमुख क्रांतिकारी |
संबंधित क्षेत्र/जिला |
विशेष |
कर्नल गुरुबक्श सिंह ढिल्लन |
शिवपुरी |
कर्नल
गुरुबक्श सिंह ढिल्लन पर आजाद हिन्द फौज में कार्य करने के कारण अभियोग चलाया
गया था वे मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के निवासी थे । |
बालमुकुंद त्रिपाठी |
जबलपुर |
|
गुलाब सिंह पटेल |
जबलपुर |
*गुलाब
सिंह मात्र 16 वर्ष की अल्पायु में ही भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान, जुलूस
का नेतृत्व करते हुये पुलिस की गोली लगने से शहीद हो गये थे। *14
अगस्त, 1942 को आजादी के इस दीवाने का स्वर्गवास
हो गया जिसके लिये पूरा जबलपुर नगर और देश उनका ऋणी रहेगा। |
इंदिरा तिवारी |
जबलपुर |
भारत
छोड़ो आंदोलन में भाग लिया जिस कारण इन्हे 1 वर्ष की सजा हुई |
बरकतुल्लाह मौलवी |
भोपाल |
*वह
एक प्रसिद्ध विद्वान थे, उन्होंने दुनिया के कई
देशों की यात्रा की और गदर पार्टी का भी हिस्सा थे। *1
दिसंबर 1915 को, उन्हें काबुल में स्वतंत्र हिंदुस्तान के
निर्वासन में भारत की पहली अनंतिम सरकार के प्रधान मंत्री के रूप में नियुक्त
किया गया था। |
कलावती त्रिवेदी |
इंदौर |
बारदौली
सत्याग्रह,सविनय
अवज्ञा आंदोलन ,भारत छोड़ो आंदोलन आदि मे भाग लीं |
चतुर्भुजआजाद |
इंदौर |
सुभाष
चन्द्र बोस की तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा वाली विचारधारा से
प्रभावित होकर आप आजाद हिन्द फौज में शामिल हुये और स्वयं को एक सैनिक के रूप
में स्थापित किया |
अर्जुन लाल सेठी |
इंदौर |
भारतीय
राष्ट्रीय काँग्रेस इंदौर शाखा के प्रथम अध्यक्ष |
मालिनी सरवते |
इंदौर |
भारत
छोड़ो आंदोलन संबंध |
जोहरीलाल झंझरिया ,इंद्रनारायन पौराणिक |
इंदौर |
भारत
छोड़ो आंदोलन संबंध |
बालेश्वर दयाल |
झाबुआ |
समाज
सेवा से संबंधित |
गौर बाई |
नरसिंहपुर(चीचली
गाँव) |
भारत
छोड़ो आंदोलन के दौरान शहीद हो गई थी |
ठाकुर रुद्रप्रताप सिंह |
नरसिंहपुर |
भारत
छोड़ो आंदोलन संबंध |
मनीराम अहिरवार |
नरसिंहपुर(चीचली
गाँव) |
भारत
छोड़ो आंदोलन के दौरान शहीद हो गए |
मास्टर बलदेव प्रसाद सोनी |
सागर |
कसाईखाना
,भारत छोड़ो ,जंगल सत्याग्रह मे भाग लिया और पत्रकार
के रूप मे ‘प्रकाश’
जैसे समाचार पत्र
प्रारंभ किया जिसने जन जागरूकता फैलाई |
सेठ सुन्दर लाल |
छतरपुर |
चरणपादुका
गोली कांड मे मृत्यु |
मूका लोहार |
सिवनी
(टुरिया) |
जंगल
सत्याग्रह से संबंध |
तुलसिरांम डाँगरे |
बालाघाट |
झण्डा
सत्याग्रह (नागपुर),भारत छोड़ो आंदोलन से संबंधित |
मंशु ओझा |
बैतूल |
भारत
छोड़ो आंदोलन संबंध |
प्रेमचंद जैन |
दमोह |
असहयोग
आंदोलन |
मार्तंडराव मजूमदार |
बुरहानपुर |
मप्र.
में गणेश उत्सव प्रारंभ करने का श्रेय |
रघुवर प्रसाद |
दमोह |
भारत
छोड़ो आंदोलन संबंध |
चंद्रकांत शुक्ल |
रीवा |
भारत
छोड़ो आंदोलन में सक्रिय |
दुर्गा शंकर मेहता |
सिवनी |
टुरिया
जंगल सत्याग्रह |
वीर उदय चंद्र जैन |
मंडला |
भारत
छोड़ो आंदोलन में शहीद |
सेठ गोंविददास |
जबलपुर |
नमक
सत्याग्रह |
द्वारका प्रसाद मिश्र |
जबलपुर | दैनिक लोकमत समाचार पत्र सम्पादन ,स्वतंत्रता संग्राम मे अग्रणी |
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